Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
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निसीहज्झयणं
५६. जे भिक्खू चित्तमंताए पुढवीए वत्थं
आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयातं वा पयावेतं वा सातिज्जति॥
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उद्देशक १८: सूत्र ५६-६१ यो भिक्षुः चित्तवत्यां पृथिव्यां वस्त्रम् ५६. जो भिक्षु सचित्त पृथिवी पर वस्त्र का आतापयेद् वा प्रतापयेद् वा, आतापयन्तं आतापन करता है अथवा प्रतापन करता है वा प्रतापयन्तं वा स्वदते।
और आतापन अथवा प्रतापन करने वाले का अनुमोदन करता है।
५७. जे भिक्खू चित्तमंताए सिलाए वत्थं यो भिक्षुः चित्तवत्यां शिलायां वस्त्रम् ५७. जो भिक्षु सचित्त शिला पर वस्त्र का
आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, आतापयेद् वा प्रतापयेद् वा, आतापयन्तं आतापन करता है अथवा प्रतापन करता है आयातं वा पयावेतं वा वा प्रतापयन्तं वा स्वदते।
और आतापन अथवा प्रतापन करने वाले सातिज्जति॥
का अनुमोदन करता है।
५८. जे भिक्खू चित्तमंताए लेलूए वत्थं
आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, आयातं वा पयावेंतं वा सातिज्जति॥
यो भिक्षुः चित्तवति 'लेलए' वस्त्रम् ५८. जो भिक्षु सचित्त ढेले पर वस्त्र का आतापयेद् वा प्रतापयेद्वा, आतापयन्तं आतापन करता है अथवा प्रतापन करता है वा प्रतापयन्तं वा स्वदते ।
और आतापन अथवा प्रतापन करने वाले का अनुमोदन करता है।
५९. जे भिक्खू कोलावासंसि वा दारुए यो भिक्षुः 'कोला'वासे वा दारुके ५९. जो भिक्षु घुणयुक्त लकड़ी, जीवप्रतिष्ठित
जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए जीवप्रतिष्ठिते साण्डे सप्राणे सबीजे लकड़ी, अंडेसहित, प्राणसहित, सहरिए सओस्से सउदए सउत्तिंग- सावश्याये सोदके सोत्तिंग-पनक-दक- बीजसहित, हरितसहित, ओससहित और पणग - दग - मट्टिय - मक्कडा - मृत्तिका-मर्कटक-सन्तानके वस्त्रम् उदकसहित लकड़ी, सर्पच्छत्र, पनक, संताणगंसि वत्थं आयावेज्ज वा आतापयेद् वा प्रतापयेद्वा, आतापयन्तं कीचड़ अथवा मकड़ी के जाले से युक्त पयावेज्ज वा, आयातं वा पयावेंतं वा प्रतापयन्तं वा स्वदते।
लकड़ी पर वस्त्र का आतापन करता है वा सातिज्जति॥
अथवा प्रतापन करता है और आतापन अथवा प्रतापन करने वाले का अनुमोदन करता है।
६०. जे भिक्खू थूणंसि वा गिहेलुयंसि यो भिक्षुः स्थूणायां वा गृहेलुके वा ६०. जो भिक्षु खंभे, देहली, ऊखल, स्नानपीठ
वा उसुकालंसि वा कामजलंसि वा 'उसुकाले' वा कामजले वा अन्यतरस्मिन् अथवा अन्य उसी प्रकार के अन्तरिक्षजात अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि वा तथाप्रकारे अन्तरिक्षजाते दुर्बद्धे । जो दुर्बद्ध हों, दुर्निक्षिप्त हों, अनिष्कम्प हों अंतरिक्खजायंसि दुब्बद्ध दुर्निक्षिप्ते अनिष्कम्पे चलाचले वस्त्रम् एवं चलाचल हों, उन पर वस्त्र का दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले आतापयेद् वा प्रतापयेद्वा, आतापयन्तं आतापन करता है अथवा प्रतापन करता है वत्थं आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा, वा प्रतापयन्तं वा स्वदते।
और आतापन अथवा प्रतापन करने वाले आयावेंतं वा पयावेंतं वा
का अनुमोदन करता है। सातिज्जति॥
६१. जे भिक्खू कुलियंसि वा भित्तिसि यो भिक्षु कुड्ये वा भित्तौ वा शिलायां वा ६१. जो भिक्षु कुड्य, भित्ति, शिला, ढेला
वा सिलंसि वा लेलुंसि वा 'लेलुंसि' वा अन्यतरस्मिन् वा तथाप्रकारे अथवा अन्य उसी प्रकार के अन्तरिक्षजात अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अन्तरिक्षजाते दुर्बद्धे दुर्निक्षिप्ते जो दुर्बद्ध हों, दुर्निक्षिप्त हों, अनिष्कम्प हों अंतरिक्खजायंसि दुब्बद्ध अनिष्कम्पे चलाचले वस्त्रम् आतापयेद् एवं चलाचल हों, उन पर वस्त्र का दुण्णिक्खित्ते अणिकंपे चलाचले वा प्रतापयेद् वा, आतापयन्तं वा आतापन करता है अथवा प्रतापन करता है