Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
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निसीहज्झयणं
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उद्देशक १५ : टिप्पण भाव के कारण प्रसंगवश देहप्रलोकन, साता एवं सुख की प्रतिबद्धता, उन्हें उपकरण कहा जाता है, अन्यथा वे ही स्वाध्याय, ध्यान के उत्क्षालन-प्रधावन आदि क्रियाओं में प्रवृत्त होना आदि दोष भी पलिमंथु होने से अधिकरण की अभिधा को प्राप्त कर लेते हैं। संभव हैं।
___ सामान्यतः भिक्षु के लिए निरर्थक अथवा विभूषाभाव ९.सूत्र १५३,१५४
से वस्त्र का कोई भी परिकर्म निषिद्ध है। वस्त्र, पात्र आदि को धोने दसवेआलियं में वस्त्र, पात्र आदि उपकरणों को धारण करने से उत्प्लावना, संपातिम जीवों का वध आदि के कारण संयमके दो प्रयोजन निर्दिष्ट हैं-१. संयम निर्वाह २. लज्जा निवारण। विराधना, सूत्रार्थ का पलिमंथु, आत्मविराधना आदि दोषों की इन प्रयोजनों से धारण किए गए उपकरण संयम में उपकारी हैं। अतः संभावना रहती है।
१. निभा. गा. ५०९२ २. दसवे. ६/१९
३. निभा. गा. २१७६-अतिरेग उवधि अधिकरणमेव सज्झाय
झाणपलिमंथो। ४. वही, गा. ५०९३