Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
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निसीहज्झयणं
वत्थ-रोमाइं अण्णउत्थिएण वा गारत्थि एण वा कप्पवेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ।।
४३. जा निग्गंथी निग्गंथस्स दीह-रोमाई अण्णउत्थिण वा गारत्थिएण वा कप्पवेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥
४४. जा निग्गंथी निग्गंथस्स दीहाई कक्खाण-रोमाइं अण्णउत्थिएण वा गारत्थि एण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥
४५. जा निम्गंथी निग्गंथस्स दीहाइं मंसु
माइं अण्णउत्थि वा गारत्थिएण वा कप्पावेज्ज वा संठवावेज्ज वा, कप्पावेंतं वा संठवावेंतं वा सातिज्जति ॥
दंत-पदं
४६. जा निग्गंथी निग्गंथस्स दंते अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा आघंसावेज्ज वा पघंसावेज्ज वा, आघंसावेंतं वा पघंसावेंतं वा सातिज्जति ॥
४७. जा निग्गंथी निग्गंथस्स दंते अण्णउत्थि एण वा गारत्थिएण वा उच्छोलावेज्ज वा पधोवावेज्ज वा, उच्छोलावेंतं वा पधोवावेंतं वा सातिज्जति ॥
४८. जा निग्गंथी निग्गंथस्स दंते अण्णउत्थिण वा गारत्थिएण वा फुमवेज्ज वा रयावज्ज वा, फुमावेंतं
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वस्तिरोमाणि अन्ययूथिन वा अगारस्थितेन वा कल्पयेद् वा संस्थापयेद् वा, कल्पयन्तं वा संस्थापयन्तं वा स्वदते ।
या निर्ग्रन्थी निर्ग्रन्थस्य दीर्घरोमाणि अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा कल्पयेद् वा संस्थापयेद् वा, कल्पयन्तं वा संस्थापयन्तं वा स्वदते ।
या निर्ग्रन्थी निर्ग्रन्थस्य दीर्घाणि कक्षामाणि अन्यथ वा अगारस्थितेन वा कल्पयेद्वा संस्थापयेद् वा, कल्पयन्तं वा संस्थापयन्तं वा स्वदते ।
या निर्ग्रन्थी निर्ग्रन्थस्य दीर्घाणि श्मश्रुरोमाणि अन्ययूथिन वा अगारस्थितेन वा कल्पयेद् वा संस्थापयेद् वा, कल्पयन्तं वा संस्थापयन्तं वा स्वदते ।
दंत-पदम्
या निर्ग्रन्थी निर्ग्रन्थस्य दन्तान् अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा आघर्षयेद् वा प्रघर्षयेद् वा, आघर्षयन्तं वा प्रघर्षयन्तं वा स्वदते ।
या निर्ग्रन्थी निर्ग्रन्थस्य दन्तान् अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा उत्क्षालयेद् वा प्रधावयेद् वा, उत्क्षालयन्तं वा प्रधावयन्तं वा स्वदते ।
या निर्ग्रन्थी निर्ग्रन्थस्य दन्तान् अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा 'फुमावेज्ज' (फूत्कारयेद्) वा रञ्जयेद्.
उद्देशक १७ : सूत्र ४३-४८
से निर्ग्रन्थ की वस्तिप्रदेश की दीर्घ रोमराजि को कटवाती है अथवा व्यवस्थित करवाती है और कटवाने अथवा व्यवस्थित करवाने वाली का अनुमोदन करती है।
४३. जो निर्ग्रन्थी अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से निर्ग्रन्थ की दीर्घ रोमराज को कटवाती है अथवा व्यवस्थित करवाती है और कटवाने अथवा व्यवस्थित करवाने वाली का अनुमोदन करती है।
४४. जो निर्ग्रन्थी अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ
से निर्ग्रन्थ की कक्षाप्रदेश की दीर्घ रोमराजि को कटवाती है अथवा व्यवस्थित करवाती है और कटवाने अथवा व्यवस्थित करवाने वाली का अनुमोदन करती है।
४५. जो निर्ग्रन्थी अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से निर्ग्रन्थ की श्मश्रु की दीर्घ रोमराज को कटवाती है अथवा व्यवस्थित करवाती है और कटवाने अथवा व्यवस्थित करवाने वाली का अनुमोदन करती है ।
दंत - पद
४६. जो निर्ग्रन्थी अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से निर्ग्रन्थ के दांतों का आघर्षण करवाती है। अथवा प्रघर्षण करवाती है और आघर्षण अथवा घर्षण करवाने वाली का अनुमोदन करती है।
४७. जो निर्ग्रन्थी अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से निर्ग्रन्थ के दांतों का उत्क्षालन करवाती है अथवा प्रधावन करवाती है और उत्क्षालन अथवा प्रधावन करवाने वाली का अनुमोदन करती है।
४८. जो निर्ग्रन्थी अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ
से निर्ग्रन्थ के दांतों पर फूंक दिलवाती है। अथवा रंग लगवाती है और फूंक दिलवाने