Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
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निसीहज्झयणं
४. आमिलकप्पास-अमिल शब्द के दो अर्थ उपलब्ध
होते हैं
१. ऊन से बना वस्त्र |
२. मेष, भेड़।
अमिला शब्द के भी तीन अर्थ उपलब्ध होते हैं
१. भेड़ की ऊन से बना वस्त्र । २
२. देश विशेष में सूक्ष्म रोओं से बना वस्त्र ।
३. पाडी (छोटी भेंस) । इस प्रकार ये सारे उल्लेख वस्त्र के प्रकरण में हैं। चूंकि यहां कपास का प्रकरण है और उर्णा कपास से भेड़ के रोम का ग्रहण हो ही जाता है, अतः यहां इसका अर्थ 'देश विशेष की भेड़ के कातने योग्य रोम' होना चाहिए।
१९. सूत्र ७१-७९
प्रस्तुत आलापक में चवालीस स्थानों का उल्लेख हुआ है । आयारचूला में भी उच्चार प्रस्रवण के परिष्ठापन के सन्दर्भ में इनमें से अनेक स्थानों का उल्लेख किया गया है। ये और इनके सहश अन्य स्थान परिष्ठापन के योग्य नहीं होते। इन स्थानों में परिष्ठापन करने से मुख्यतः तीन दोष संभव हैं
१. आत्मोपघात - उस स्थान के स्वामी या वहां अधिष्ठित देव को वहां परिष्ठापन करने से अप्रीति हो सकती है, वह प्रद्विष्ट होकर मुनि को मार सकता है, पीट या परितापित कर सकता है, गन्दगी पर उसे गिरा सकता है आदि।
उस
२. संयमोपघात - अंगारदाह, क्षारदाह तथा फल आदि सुखाने के स्थानों पर परिष्ठापन करने पर वे गृहस्थ इन कार्यों के लिए अन्य पृथ्वी आदि का प्रयोग करते हैं या मल को वनस्पतिकाय पर गिराते
१. पाइय.
२. आचू. ५/१४ की वृत्ति
३. निभा. २, चू. पृ. ३९९ - रोमेसु कया अमिला । ४. वही, पृ. ४१०- अमिलाइया पजाती ।
(अमिल-भेड़, अमिला पाडी)
५. आचू. १०।२३-२७
६. निभा. गा. १५४१
आया-संजम पवयण, तिवेिधं उवघाइयं तु णातव्वं । गिमादिंगालादी, सुखाणमादी जहा कमसो।।
महा. (अनु. प.) २४३ । १४
७.
८. सूय. ९।१९
९. (क) निभा. १५३४- अंतो गिहं खलु गिहं ।
(ख) वही, भा. २ चू. पृ. २२४-घरस्स अंतो गिब्धंतरं हिं भणति । गिहगहणेण वा सव्वं चेव घरं घेप्पति ।
१०. (क) वही कोडुगसुविधी व हिमुहं होति ।
(ख) वही कोओ अग्निमालिओ, सुविही छदा आलिंदो, एते
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उद्देशक ३ टिप्पण
:
हैं तो कायवध होता है।
३. प्रवचनोपघात- किसी के घर गृह द्वार आदि पर अथवा इक्षुवन, शालिवन आदि स्थानों पर परिष्ठापन करने से अपयश एवं प्रवचन - हानि की संभावना रहती है।
अतः इनमें से किसी भी स्थान पर उच्चार-प्रस्रवण का परित्याग करने पर भिक्षु को मासलघु प्रायश्चित्त प्राप्त होता है । महाभारत में बताया गया है कि हरे भरे लहलहाते खेतों, घर के निकट, भस्म या गोबर के ढेर, पथिकों के विश्राम योग्य छायादार मार्ग तथा मनोरम स्थान पर मलमूत्र का त्याग करना वर्जित है। सूयगडो में भी वनस्पति पर मलमूत्र के विसर्जन का निषेध प्राप्त होता है।' शब्द विमर्श
१. हि गृह और उसका आभ्यंतरवर्ती भाग।' २. हिमुह - घर का मुख-घर के बाहर का कोठा या चबूतरा । " ३. गिहदुवार - घर का द्वार (मुख्य द्वार) । ११
४. गिहपडिदुवार-घर का प्रतिद्वार (पिछला दरवाजा, खिड़की आदि) । १२
५. गिहेलुय- घर की एलुका (देहली)। १३
६. हिंगण घर का आंगन। "
७. गिहवच्च - घर का शौचालय । १५ ८. मडगगिह-कब्रिस्तान । १६
९. मडगछारिय- मृतक की राख । १७
१०. मडगथ्रुभिय- मृतक की स्तूपिका ( चबूतरी)। १८ ११. मडगासय-मृतक का आश्रय । १९
दो वि गिहमुहं ।
११. वही - अग्गदारं पवेसितं तं गिहदुवारं भण्णति ।
१२. पाइप पडिवार छोटा द्वार
१३. वही - देहली, द्वार के नीचे की लकड़ी ।
१४. निभा. गा. १५३४- अंगणं मंडवथाणं । (चू. पृ. २२४ ) - गिहस्स अग्गतो अब्भावगासं मंडवथाणं अंगण भण्णति ।
१५. वही, गा. १५३५ - गिहवच्चं पेरंता, पुरोहडं वा वि जत्थ वा वच्चं । (चूर्ण) हिस्स समंततो बच्चे भण्णति । पुरोहडं वा वच्चं पत्यं ति वृत्तं भवति । जत्थ वा वच्चं करेंति, तं वच्चं सण्णाभूमि भण्णति । १६. वही, गा. १५३६ - मडगगिहा मेच्छाणं । (चू. पृ. २२५) मडगगिहं णाम मेच्छा घरभंतरे मतयं छोढुं विज्जति, न डज्झति तं मडगगिहं । १७. वही, गा. १५३६ - छारो तु अपुंजकडो। (चू.पू. २२५) अभिणवदड्ड अपुंजक छारो भण्णति ।
१८. वही, १५३५ - थूभा पुण विच्चगा होंति ।
१९. निभा. २, चूं. २२५ - मडाणं आश्रयो मडाश्रय स्थानमित्यर्थः । मसाणासपणे आणेतुं महर्य जत्थ मुच्यति तं महास