Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
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उद्देशक ९ : टिप्पण
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निसीहज्झयणं से अनेक दोष संभव हैं, जैसे-भुक्तभोगों की स्मृति, अभुक्तभोगों ४. वेलंबक-विदूषक।१२ के प्रति कुतूहल, संयमभ्रंश, अत्यधिक भीड़ के कारण भिक्षा, ५.प्लवक छलांग भरने वाले, नदी, समुद्र आदि तैरने वाले। विचारभूमि आदि में बाधा, स्वाध्याय, ध्यान में विघ्न आदि। ६. लासक-रास रचाने वाले जिसमें वाद्य, नृत्य तथा विस्तार हेतु द्रष्टव्य ठाणं १०।२७,२८ तथा उनके टिप्पण। गीत–तीनों हो, वह लास्य-रास कहलाता है, उसको प्रस्तुत करने १३. सूत्र २१-२९
वाले।" निशीथ चूर्णि के अनुसार 'जय' 'जय' शब्द का प्रयोग करने प्रस्तुत आलापक में राजा के द्वारा विभिन्न वर्गों के लिए प्रदत्त वाले भांड लासक कहलाते हैं। ५ विभिन्न प्रकार के राजसत्क भोजन को ग्रहण करने का प्रायश्चित्त ७. दमक-शिक्षक, जो अश्व आदि पशुओं एवं तीतर आदि प्रज्ञप्त है। इनमें कुछ राजा के अधीनस्थ काम करने वाले आरक्षक पक्षियों को शिक्षित करते हैं। आदि, कुछ उसकी व्यक्तिगत सेवा में नियुक्त मर्दन, अभ्यंगन ८. मेंठ-युद्ध आदि के लिए पशु-पक्षियों को प्रशिक्षित करने आदि करने वाले राजसेवक, कुछ अन्तःपुर में नियुक्त वर्षधर, वाले, योग्या (शस्त्रचालन का अभ्यास") कराने वाले ८ कंचुकी आदि राजकर्मचारी, इक्कीस प्रकार की दासियां तथा पशु- ९. आरोही-युद्धकाल में आरोहण करने वाले। पक्षियों के पालन-पोषण एवं प्रशिक्षण में नियुक्त राजकर्मचारी हैं १०. सत्थाह-शस्त्राह-शस्त्र को धारण (आधान करने) तथा कुछ जल्ल, मल्ल आदि कलाकार वर्ग के लोग हैं। भाष्यकार वाले अर्थात् सुरक्षा प्रहरी। निशीथचूर्णि के अनुसार इसका अर्थ के अनुसार इन विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों के लिए राजा द्वारा प्रदत्त है–धनुर्वेद आदि राजशास्त्रों का आख्यान (कथन) करने वाले। भोजन को ग्रहण करने पर वे ही दोष संभव हैं, जो राजपिण्ड को ११. संवाह-संबाधन-मर्दन करने वाले। ग्रहण करने में आते हैं। अतः इनके लिए भी वही प्रायश्चित्त एवं १२. अब्भंग-अभ्यंगन-तैल मर्दन करने वाले।२२ अपवाद-पद है।
१३. उव्वट्ट-उद्वर्तन करने वाले। २३ शब्द विमर्श
१४. मज्जावय-मज्जन-स्नान करवाने वाले। १.क्षत्रिय-आरक्षक।
१५. मंडावय-मंडित (आभूषित) करने वाले।२५ २. राजा-अधिपति।'
१६. छत्तग्गह-छत्र रखने वाले। ३. कुराजा-कुत्सित राजा या प्रत्यन्तवर्ती नृप।'
१७. चामरम्गह-चामर डुलाने वाले। ४. राजप्रेष्य-राजकीय भृत्य।
१८. हडप्पग्गह-हडप्प (आभरण) पहनाने वाले।" ५.णीहड-प्रदत्त।
१९. परियट्टग्गह-वस्त्र परिवर्तन करने वाले।२७ १. जल्ल-कौड़ी से जुआ खेलने वाला। निशीथचूर्णि के २०. दीवियग्गह-दीपिका रखने वाले। अनुसार जल्ल राजा के स्तोत्रपाठक होते हैं।'
२१. असिग्गह-तलवार धारण करने वाले। २.मल्ल-पहलवान।
२२-२४. धणुग्गह-कोंतम्गह-क्रमशः धनुष धारण करने ३. मौष्टिक-मुष्टियुद्ध करने वाले, युद्ध करने वाले मल्ल । वाले, शक्ति धारण करने वाले, भाला धारण करने वाले। १. निभा. गा. २५९२-२५९४
१५. निभा. २ चू.पृ. ४६८-जयसद्दपयोत्तारो लासगा, भंडा इत्यर्थः । २. वही, गा. २५९७,२५९८
१६. वही, पृ. ४६९-जे पढमं विणयं गाहेति ते दमगा। ३. वही, भा. २,चू.पृ. ४६७-क्षतात् त्रयान्तीति क्षत्रिया आरक्षकेत्यर्थः। १७. अचि. ३१४५२ ४. वही-अधिवो राया।
१८. निभा. भा. २ चू.पृ. ४६९-जे जणा जोगासणेहिं वावारं वा वहेंति ५. वही, पृ. ४६७,४६८-कुस्सितो राया कुराया। अहवा पच्चंतणिवो ते मेंठा। कुराया।
१९. वही-जुद्धकाले जे आरुहंति ते आरोहा। वही, पृ. ४६८-जे एतेसिं चेव प्रेष्या पेसिता।
२०. वही-ईसत्यमादियाणि रायसत्थाणि आहयंति कथयंति ते सत्थाहा। ७. वही-णीहडं-णिसटुं दत्तमित्यर्थः।
२१. वही-पडिमइंति जे ते परिमद्दा, शयनकाले परिपिटुंति। ८. अणु.सू.८८
२२. वही-शतपाकादिना तैलेन अब्भंगेति। ९. निभा. २,चू.प्र. ४६८-जल्ला राज्ञः स्तोत्रपाठकाः।
२३. वही-पादेहिं उव्वट्टेति। १०. वही-अणाहमल्लगाणं पविट्ठा मल्ला।
२४. वही-हावेंति जे ते मज्जावका। ११. वही-मुट्ठिया जुज्झणमल्ला।
२५. वही-मउडादिणा मंडेति जे ते मंडावगा। १२. अणु.सू.८८
२६. वही-आभरणमंडयं हडप्पो। १३. निभा. २चू.पू. ४६८-णदीसमुद्दादिसु जे तरंति ते पवगा। २७. वही-वस्त्रपरावर्तं गृहंति जे ते परियट्टगा। १४. अणु.सू. ८८
२८. वही-चावं घणुयं।