Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
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चउद्दसमो उद्देसो : चौदहवां उद्देशक
मूल
हिन्दी अनुवाद
संस्कृत छाया पडिग्गह-पदं
प्रतिग्रह-पदम् १. जे भिक्खू पडिग्गहं किणेति, यो भिक्षुः प्रतिग्रहं क्रीणाति, क्रापयति, किणावेति, कीयमाहट्ट दिज्जमाणं । क्रीतमाहृत्य दीयमानं प्रतिगृह्णाति, पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा प्रतिगृह्णन्तं वा स्वदते। सातिज्जति॥
प्रतिग्रह-पद १.जो भिक्षु प्रतिग्रह (पात्र) का क्रय करता है,
क्रय करवाता है और क्रीत किए हुए लाकर दिए जाने वाले पात्र को ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है।
२. जे भिक्खू पडिग्गहं पामिच्चेति, पामिच्चावेति, पामिच्चमाहट्ट दिज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति।।
यो भिक्षुः प्रतिग्रहं प्रामित्यति, २. जो भिक्षु प्रतिग्रह को उधार लेता है, उधार प्रामित्ययति, प्रामित्यमाहृत्य दीयमानं लिवाता है और उधार लिए हुए लाकर दिए प्रतिगृह्णाति, प्रतिगृह्णन्तं वा स्वदते । जाने वाले पात्र को ग्रहण करता है अथवा
ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है।
३. जे भिक्खू पडिग्गहं परियट्टेति, यो भिक्षुः परिवर्तते, परिवर्तयति,
परियट्टावेति, परियट्टिय- परिवर्तितमाहृत्य दीयमानं प्रतिगृह्णाति, माहट्ट दिज्जमाणं पडिग्गाहेति, प्रतिगृह्णन्तं वा स्वदते । पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति॥
३. जो भिक्षु प्रतिग्रह का परिवर्तन करता है,
परिवर्तन करवाता है और परिवर्तित किए हुए लाकर दिए जाने वाले पात्र को ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है।
४. जे भिक्खू पडिग्गहं अच्छेज्जं
अणिसटुं अभिहडमाहट्ट दिज्जमाणं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति॥
यो भिक्षुः प्रतिग्रहं आच्छेद्यं अनिसृष्टं अभिहृतमाहृत्य दीयमानं प्रतिगृह्णाति, प्रतिगृह्णन्तं वा स्वदते।
४. जो भिक्षु छीन कर लाए हुए, अननुज्ञात और
सामने लाकर दिए जाने वाले पात्र को ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है।
५. जे भिक्खू अइरेगं पडिग्गहं गणिं यो भिक्षुः अतिरेकं प्रतिग्रहं गणिनमुद्दिश्य - ५. जो भिक्षु गणि को उद्दिष्ट कर, गणि को उद्दिसिय गणिं समुद्दिसिय तं गणिं गणिनं समुद्दिश्य तं गणिनम् अनापृच्छ्य समुद्दिष्ट कर, उस गणि को पूछे बिना, अणापुच्छिय अणामंतिय । अनामन्त्र्य अन्योन्यस्मै वितरति, आमन्त्रित किए बिना अतिरेक पात्र को अण्णमण्णस्स वियरति, वियरतं वा वितरन्तं वा स्वदते ।
परस्पर एक दूसरे को देता है अथवा देने सातिज्जति॥
वाले का अनुमोदन करता है।
६.जे भिक्खू अइरेगं पडिग्गहं खुड्डगस्स
वा खुड्डियाए वा थेरगस्स वा थेरियाए
यो भिक्षुः अतिरेकं प्रतिग्रहं क्षुद्रकाय वा ६. क्षुल्लक अथवा क्षुल्लिका, स्थविर अथवा क्षुद्रिकायै वा स्थविराय वा स्थविरायै स्थविरा-जो अहस्तच्छिन्न है, अपादच्छिन्न