Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
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उद्देशक १० : टिप्पण
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निसीहज्झयणं
१. क्षेत्र से प्राप्त, काल से अप्राप्त २. काल से प्राप्त, क्षेत्र से अप्राप्त ३. क्षेत्र एवं काल दोनों से प्राप्त ४. क्षेत्र एवं काल दोनों से अप्राप्त ।
ज्ञातव्य है कि वर्षावास प्रायोग्य क्षेत्र में पहुंच जाना क्षेत्र से प्राप्त और आषाढ़ी पूर्णिमा का सम्पन्न हो जाना काल से प्राप्त कहलाता है।
शब्द विमर्श
१. प्रथम समवसरण-वर्षावास (चतुर्मास काल)।' २. उद्देश-प्राप्त-क्षेत्र और काल के विभाग से प्राप्त । ३. चीवर-वस्त्र।
विशेष हेतु द्रष्टव्य-कप्पो ३/१६,१७ और उसका भाष्य निशीथ भाष्य गा. ३२२३-३२७५।
१. निभा. भा. ३ चू.पृ. १५८ २. (क) वही, पृ. १५९
(ख) बृभा. गा. ४२३६ की वृत्ति-पढमसमोसरणे.....प्राप्तानि ।