Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
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निसीहज्झयणं
उद्देशक १२: सूत्र ६-१२
२५४ परवत्थोच्छन्नपीढ-पदं
परवस्त्रावच्छन्नपीठ-पदम् ६.जे भिक्खू तणपीढगंवा पलालपीढगं यो भिक्षुः तृणपीठकं वा पलालपीठकं वा
वा छगणपीढगं वा वेत्तपीढगं वा 'छगण पीठकं वा वेत्रपीठकं वा कट्ठपीढगं वा परवत्थेणोच्छण्णं काष्ठपीठकं वा परवस्त्रेणावच्छन्नं अहिटेति, अहिटेंतं वा सातिज्जति॥ अधितिष्ठति, अधितिष्ठन्तं वा स्वदते।
परवस्त्राच्छादितपीठ-पद ६. जो भिक्षु गृहस्थ के वस्त्र से आच्छन्न घास
के पीढे, पलाल के पीढे, गोबर के पीढे, बेंत के पीढे अथवा काठ के पीढे का उपयोग करता है अथवा उपयोग करने वाले का अनुमोदन करता है।
णिग्गंथी-संघाडि-पदं ७. जे भिक्खू णिग्गंथीए संघाडि
अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा सिव्वावेति, सिव्वावेंतं वा सातिज्जति॥
निर्ग्रन्थी-संघाटी-पदम् यो भिक्षुः निर्ग्रन्थ्याः संघाटीम् अन्ययूथिकेन वा अगारस्थितेन वा सेवयति, सेवयन्तं वा स्वदते ।
निर्ग्रन्थी-संघाटी-पद ७. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से निर्ग्रन्थी की संघाटी (पछेवड़ी) सिलवाता है अथवा सिलवाने वाले का अनुमोदन करता है।
थावरकायसमारंभ-पदं ८. जे भिक्खू पुढवीकायस्स कलमायमवि समारंभति, समारंभंतं वा सातिज्जति॥
स्थावरकायसमारंभ-पदम्
स्थावरकाय-समारंभ-पद यो भिक्षुः पृथिवीकायस्य कलमात्रमपि ८. जो भिक्षु चने जितनी भी (स्तोकप्रमाण) समारभते, समारभमाणं वा स्वदते। पृथिवीकाय का समारम्भ करता है अथवा
समारम्भ करने वाले का अनुमोदन करता
९. एवं आउक्कायस्स वा तेउकायस्स एवं अप्कायस्य वा तेजस्कायस्य वा
वा वाउकायस्स वा वणप्फइकायस्स __ वायुकायस्य वा वनस्पतिकायस्य वा वा कलमायमवि समारंभति, कलमात्रमपि समारभते, समारभमाणं वा समारंभंतं वा सातिज्जति॥
स्वदते।
९. इसी प्रकार (जो भिक्षु) चने जितनी भी
अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय अथवा वनस्पतिकाय का समारम्भ करता है अथवा समारम्भ करने वाले का अनुमोदन करता
रुक्खारोहण-पदं १०. जे भिक्खू सचित्तरुक्खं दुरुहति,
दुरुहंतं वा सातिज्जति॥
रुक्षारोहण-पदम् यो भिक्षुः सचित्तरुक्षं 'दुरुहति' (आरोहति), दुरुहंतं (आरोहन्तं) वा स्वदते।
वृक्षारोहण-पद १०. जो भिक्षु सचित्त वृक्ष पर चढ़ता है अथवा
चढ़ने वाले का अनुमोदन करता है।
गिहि-पदं
गृहि-पदम्
गृही-पद ११. जे भिक्खू गिहिमत्ते भुंजति, भुंजतं यो भिक्षुः गृह्यमत्रे भुङ्क्ते, भुञ्जानं वा ११. जो भिक्षु गृहस्थ के पात्र में आहार करता वा सातिज्जति॥ स्वदते।
है अथवा आहार करने वाले का अनुमोदन करता है।
१२. जे भिक्खू गिहिवत्थं परिहेति, यो भिक्षुः गृहिवस्त्रं परिदधाति, परिदधतं परिहेंतं वा सातिज्जति॥
वा स्वदते।
१२. जो भिक्षु गृहस्थ का वस्त्र पहनता है
अथवा पहनने वाले का अनुमोदन करता