Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
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निसीहज्झयणं
२६१ गणियाओ वंजियाओ अंतोमासस्स द्विः वा त्रिः वा उत्तरति वा सन्तरति वा, दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा उत्तरति वा उत्तरन्तं वा सन्तरन्तं वा स्वदते, संतरति वा, उत्तरंतं वा संतरंत वा तद्यथा-गंगा, यमुना, सरयू, ऐरावती, सातिज्जति, तं जहा-गंगा जउणा महीसरऊ एरावती महीतं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं तत्सेवमानः आपद्यते चातुर्मासिकं परिहारट्ठाणं उग्घातियं॥
परिहारस्थानम् उद्घातिकम्।
उद्देशक १२ : सूत्र ४३ महानदियों का एक मास में दो बार अथवा तीन बार उत्तरण अथवा संतरण करता है अथवा उत्तरण अथवा संतरण करने वाले का अनुमोदन करता है जैसे-१. गंगा २. यमुना ३. सरयू ४. ऐरावती ५. मही।९ -इनका आसेवन करने वाले भिक्षु को चातुर्मासिक उद्घातिक (लघु चौमासी) प्रायश्चित्त प्राप्त होता है।