Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
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निसीहज्झयणं
२०७
उद्देशक १० : सूत्र १५-२३ उग्धाइय-अणुग्धाइय-पदं
उद्घातिकानुद्घातिक-पदम् उद्घातिक-अनुद्घातिक-पद १५. जे भिक्खू उग्घातियं अणुग्घातियं यो भिक्षुः उद्घातिकम् अनुद्घातिकं १५. जो भिक्षु उद्घातिक (लघु) प्रायश्चित्त वदति, वदंतं वा सातिज्जति॥ वदति, वदन्तं वा स्वदते।
__ को अनुद्घातिक (गुरु) प्रायश्चित्त कहता
है अथवा कहने वाले का अनुमोदन करता
१६. जे भिक्खू अणुग्घातियं उग्घातियं यो भिक्षुः अनुद्घातिकम् उद्घातिकं १६. जो भिक्षु अनुद्घातिक प्रायश्चित्त को वदति, वदंतं वा सातिज्जति॥ वदति, वदन्तं वा स्वदते।
उद्घातिक प्रायश्चित्त कहता है अथवा कहने वाले का अनुमोदन करता है।
१७. जे भिक्खू उग्घातियं अणुग्घातियं यो भिक्षुः उद्घातिकम् अनुद्घातिकं देति, देंतं वा सातिज्जति॥
ददाति, ददतं वा स्वदते।
१७. जो भिक्षु उद्घातिक प्रायश्चित्त प्राप्त होने वाले को अनुद्घातिक प्रायश्चित्त देता है अथवा देने वाले का अनुमोदन करता है।
१८. जे भिक्खू अणुग्घातियं उग्घातियं यो भिक्षुः अनुद्घातिकम् उद्घातिकं
देति, देंतं वा सातिज्जति॥ ददाति, ददतं वा स्वदते।
१८. जो भिक्षु अनुद्घातिक प्रायश्चित्त प्राप्त होने वाले को उद्घातिक प्रायश्चित्त देता है अथवा देने वाले का अनुमोदन करता है।१२
१९. जे भिक्खू उग्घातियं सोच्चा णच्चा यो भिक्षुः उद्घातिकं श्रुत्वा ज्ञात्वा १९. जो भिक्षु उद्घातिक प्रायश्चित्त सेवन करने संभु जति, संभुंजंतं वा सातिज्जति॥ संभुङ्क्ते, संभुञ्जानं वा स्वदते । वाले को सुनकर जानकर उसके साथ संभोज
रखता है अथवा संभोज रखने वाले का अनुमोदन करता है।
२०. जे भिक्खू उग्घातिय-हेउं सोच्चा यो भिक्षुः उद्घातिकहेतुं श्रुत्वा ज्ञात्वा २०. जो भिक्षु उद्घातिक प्रायश्चित्त के हेतु को णच्चा संभुंजति, संभुजंतं वा संभुङ्क्ते, संभुञ्जानं वा स्वदते ।
सुनकर जानकर उसके साथ संभोज रखता है सातिज्जति॥
अथवा संभोज रखने वाले का अनुमोदन करता है।
२१. जे भिक्खू उग्घातिय-संकप्पं यो भिक्षुः उद्घातिकसंकल्पं श्रुत्वा ज्ञात्वा २१. जो भिक्षु उद्घातिक प्रायश्चित्त के संकल्प सोच्चा णच्चा संभुंजति, संभुजंतं वा संभुङ्क्ते, संभुञ्जानं वा स्वदते।
को सुनकर जानकर उसके साथ संभोज रखता सातिज्जति॥
है अथवा संभोज रखने वाले का अनुमोदन करता है।
२२. जे भिक्खू अणुग्घाइयं सोचा यो भिक्षुः अनुद्घातिकं श्रुत्वा ज्ञात्वा २२. जो भिक्षु अनुद्घातिक प्रायश्चित्त सेवन णच्चा संभुंजति, संभुजंतं वा संभुङ्क्ते, संभुजानं वा स्वदते।
करने वाले को सुनकर जानकर उसके साथ सातिज्जति॥
संभोज रखता है अथवा संभोज रखने वाले का अनुमोदन करता है।
२३.जे भिक्खू अणुग्धाइय-हेउं सोच्चा यो भिक्षुः अनुद्घातिकहेतुं श्रुत्वा ज्ञात्वा २३. जो भिक्षु अनुद्घातिक प्रायश्चित्त के हेतु