Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
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उद्देशक ३ टिप्पण
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पाश्वं भाग आदि की रोमराज का कर्तन आदि क्रियाएं अपवादरूप अनुज्ञात हैं।
ज्ञातव्य है कि प्रस्तुत आलापक में भाष्य एवं चूर्णि में स्वीकृत पाठ में चक्षु रोम एवं केश सम्बन्धी दो सूत्र अतिरिक्त हैं तथा जै. वि. भा. द्वारा सम्पादित प्रस्तुत पाठ में दीर्घरोम एवं दीर्घ नासारोम सम्बन्धी दो सूत्र अतिरिक्त हैं।
१६. सूत्र ६७,६८
अकारण शरीर अथवा शरीर के अवयव - कान, दांत आदि के मैल का अपनयन करना विभूषा है। इससे सूत्रपौरुषी एवं अर्थपौरुषी में विघ्न पैदा होता है अतः इसका निषेध किया गया है। रोग आदि के कारण यतनापूर्वक पंक, जल्ल या मैल का अपनयन करना, आंख, कान आदि के मैल का विशोधन करना स्थविरकल्प में अनुज्ञात माना गया है।" शब्द विमर्श
१. सेय - स्वेद, पसीना ।
२. जल्ल- जमा हुआ मैल
३. पंक-गीला मेल
४. मल-रज आदि ।"
५. निर्हरण- विशोधन निर्हरण अर्थात् निष्कासन या अपनयन करना, विशोधन अर्थात् सम्पूर्ण मेल का अपनयन करना।'
१७. सूत्र ६९
सिर ढकना स्त्रीवेश है। अकारण लिंग विपर्यास करने से बहुत से दोष पैदा होते हैं । अतः उसका वर्जन किया गया है। " भाष्यकार ने ग्लान्य, अटवी, स्तेन आदि अपवादों में यतनापूर्वक सिर ढकना, अवगुंठन करना आदि को अनुज्ञात माना है। "
१. निभा. गा. १५१९, १५२० तथा उनकी चूर्णि ।
२. यही भा. २, चू, पृ. २२१- अप्परुतीए या बाउसदोसा भवति । सुत्तत्थेसु य पलिमंथो ।
३. वही, पृ. २२२ - णयणे वा दूसिओ आणं वा णातिकम्मति । ४. वही, पृ. २२१ - सेयो प्रस्वेदः ।
५. वही, गा. १५२२ - जल्लो तु होति कमढं ।
६. वही, १५२२ - पंको पुण सेउल्लो, चिक्खलो वा वि जो लग्गो । ७. वही, भा. २, चू. पृ. २२१ - मलो पुण उत्तरमाणो अच्छो रेणु वा । ८. वहीणीहरति अवणेति, असे विसोहणं ।
९. वही, गा. १५२६
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परिभोग विवच्चासो लिंगविवेगे य छत्तए तिविधे । गिहिपंत-तक्करेसु य, पच्चावाता भवे दुविहा ।।
१०. वही, गा. १५२८
बितियपदं गेलणे, असहू सागारसेधमादीसु । अद्धाणे तेणेसु य, संजतपंतेसु जतणाए ।
११. वही, भा. २, चू. पृ. २२२ - सीसस्स आवरणं सीसद्वारं । अहवा सीस एवं दुवारं दुबारिया
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निसीहज्झयणं
सीसवारिया का अर्थ है - शीर्षद्वारिका, सिर ढकना, मस्तक का अवगुंठन, घूंघट आदि । १
१८. सूत्र ७०
प्रस्तुत सूत्र में पाट, ऊन एवं सूत से वशीकरण सूत्र बनाने का प्रायश्चित्त प्रज्ञप्त है। चूर्णिकार ने वशीकरण सूत्र के दो अर्थ बतलाए हैं
१. वह धागा, जिससे अवश को वश में किया जाए, वशीकरण सूत्र कहलाता है।
२. जिससे वस्त्र बनाए जाएं या उपकरण बांधे जाएं, उसे भी वशीकरण सूत्र कहते हैं। "
भाष्यकार ने वशीकरण सूत्र के तीन प्रयोजन बतलाए हैं१. पशु को बांधना २. उपकरणों को बांधना ३. फटे वस्त्र की सिलाई करना। "
निशीथ सूत्र की हुंडी में कहा गया है सूत नां डोरा मंत्री नै वसीकरण डोरा करे।" अर्थात् सूत्र का धागा जिसे मंत्रित कर किसी को वश में किया जाता है।
वशीकरण सूत्र के निर्माण में संयमविराधना एवं आत्मविराधना आदि दोष संभव हैं अतः इसे प्रायश्चित योग्य कार्य माना गया है।
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शब्द विमर्श
१. सणकप्पास - शण की छाल (कातने योग्य छाल को कपास कहते है।")
२. उण्णकप्पास-भेड के रोम । १७
३. पोंडकप्पास - सूती कपास । १८
१२. वही, पृ. २२३ - अवसा वसे कीरंति जेण तं वसीकरण सुत्तयं, सो पुण दोरो जेण वासे कीरइ उवकरणं बज्झति त्ति वृत्तं भवति । १३. (क) वही, गा. १५२९
वसीकरण-सुत्तगस्सा, अंछणयं वट्टणं व जो कुज्जा । बंधण सिव्वणहेडं...
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(ख) वही, गा. १५३०
अवसा वसम्मि कीरंति, जेण पसवो वसंति व जता ऊ । अंछणता तु पसिरणा, वट्टण सुत्ते व रज्जू वा ।।
१४. नि. हुंडी ३ /७२
१५. वही, गा. १५३१
अंछणतवट्टणं वा करेंति जीवाण होति अतिवातो । ऊस हत्यछोडन गिलाण आरोयणायाए ।
१६. वही, भा. २ चू. पृ. २२३-सणो वणस्सतिजाती, तस्स वागो कच्चणिज्जो कप्पासो भण्णति ।
१७. वही - उण्ण त्ति लाडाणं गड्डुरा भण्णंति ।
१८. वही, पृ. २२३- पोंडा वमणी तस्स फलं, तस्स पम्हा कच्चणिज्जा कप्पासो भण्णति ।