Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
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टिप्पण
१. मातृग्राम (माउग्गाम)
शब्दकोश के अनुसार विषय, शब्द, अस्त्र, इन्द्रिय, भूत एवं ३. प्रार्थना करता है (विण्णवेति) गुण के आगे समूह के अर्थ में ग्राम शब्द का प्रयोग होता है। आगम विज्ञापना के दो अर्थ हैं-प्रार्थना और मैथुन का आसेवन । के व्याख्या-ग्रन्थों में ग्राम का इन्द्रिय अर्थ भी उपलब्ध होता है। प्रस्तुत प्रसंग में इसका प्रार्थना अर्थ ग्राह्य है । १२ जिसकी इन्द्रियां माता के समान हों, वह मातृग्राम है। महाराष्ट्र में ४. सूत्र २-१० स्त्री के लिए भी मातृग्राम शब्द का प्रयोग होता है।
प्रस्तुत आगम के प्रथम उद्देशक में 'हस्तकर्म पद' में हस्तमैथुन प्रस्तुत आगम में छठे एवं सातवें दोनों उद्देशकों में 'माउग्गाम' । आदि इन्हीं सब प्रवृत्तियों का प्रायश्चित्त प्रज्ञप्त है। प्रस्तुत उद्देशक में एवं 'मेहुणवडिया' इन दो शब्दों का प्रयोग हआ है। इन दोनों इस आलापक में मैथुन की प्रतिज्ञा से स्त्री को हृदय में स्थापित कर उद्देशकों का मुख्य प्रतिपाद्य है-अब्रह्मसेवन के संकल्प से की जाने । 'यह मेरी स्त्री है'-ऐसा भाव करके इन प्रवृत्तियों को करने का वाली विविध प्रवृत्तियों का प्रायश्चित्त-कथन । इनमें 'माउग्गाम' के प्रायश्चित्त प्रज्ञप्त है। मैथुनभाव से की जाने वाली ये प्रवृत्तियां साथ दो विभक्तियां प्रयुक्त हैं-द्वितीया एवं षष्ठी। निशीथभाष्य एवं मैथुनसंज्ञा के अंतर्गत आती हैं। १३ अतः इनका प्रायश्चित्त चतुर्गुरु चूर्णि में षष्ठी विभक्त्यन्त मातृग्राम पद के विषय में अनेक उल्लेख मिलते हैं
५. सूत्र १२ • मातृग्राम को हृदय में स्थापित कर।
___ कलह के दो प्रकार हैं-विषय-कलह और कषाय-कलह ।। • मातृग्राम के लिए कमनीय अथवा अभिरमणीय बनने हेतु ।। कामातुर मनोवृत्ति से किसी स्त्री को प्रान्तापित करना, उस प्रकार के • मातृग्राम को देने अथवा उसे आकृष्ट करने हेतु ।। शब्दों का प्रयोग करना विषय-कलह (काम-कलह) है। स्त्री के • सम्बन्ध के अर्थ में प्रयुक्त षष्ठी विभक्ति ।
साथ काम-कलह करना, करने के लिए अन्य को कहना, कामअतः इन सूत्रों में स्त्री के प्रति आसक्त होकर प्रवृत्ति हो रही कलह देखने हेतु अन्यत्र जाना आदिब्रह्मचर्य के लिए घातक प्रवृत्तियां है अथवा स्त्री के साथ अब्रह्म-सेवन के संकल्प से स्त्री की उपस्थिति है। इनसे कलंक आने की भी संभावना रहती है।५ अतः भिक्षु के में प्रवृत्ति हो रही है-इसका निर्णय अनुसंधान का विषय है। लिए इनका निषेध किया गया है। २. अब्रह्म-सेवन के संकल्प से (मेहुणवडियाए)
६. सूत्र १३ मैथुन का अर्थ है-मिथुन भाव की प्रतिपत्ति, अब्रह्म । स्त्री
अपने कुत्सित भावों को लिखित रूप में देकर किसी स्त्री के पुरुष के परस्पर गात्रस्पर्श से होने वाला रागात्मक परिणाम मैथुन अब्रह्म की उदीरणा करना घातक प्रवृत्ति है। इससे अनेक दोषों की है। उस रागमय परिणाम की प्रतिज्ञा अर्थात् संकल्प मैथुन-प्रतिज्ञा संभावना रहती है। अतः प्रस्तुत सूत्र में इस प्रकार का संवाद १. अचि. ६/५०-ग्रामो विषयशब्दास्त्र भूतेन्द्रियगुणाद् व्रजे। ९. वही, पृ. ३७६-मिहुणभावो मेहुणं, मिथुनकर्म वा मेहुनं २. (क) दसवे. जिचू. पृ. ३४३-गामगहणेण इंदियगहणं कयं ।
अब्रह्ममित्यर्थः। (ख) दस.हा.टी. प. २६६-गामा इंदियाणि।
१०. त.वा.७/१६/४-स्त्रीपुंसयोः परस्परगात्रोपश्लेषे रागपरिणामो ३. निभा. भा. २, चू. पृ. ३६१-मातिसमाणो गामो मातुगामो।
मैथुनम्॥ ४. वही-मरहट्ठविसयभासाए वा इत्थी माउग्गामो भण्णति।
११. निभा. भा. २, चू.पृ. ३७१-विज्ञापना प्रार्थना । अथवा ५. वही, पृ. ३८२-तं माउग्गामं हिअए ठवेउं 'मम एसा अविरति'त्ति तद्भावसेवनं विज्ञापना। काउं एवं हियए निवेसिऊण।
१२. वही, पृ. ३७१-इह तु प्रार्थना परिगृह्यते। ६. (क) वही, पृ. ३९४-इत्थीणं कमणिज्जो भविस्सामीति । १३. वही, गा. २२४९ (ख) वही, पृ. ४०६
१४. वही, गा. २२५७, २२५८ व उनकी चूर्णि ७. वही, पृ. ३८८-तेसिं दाहामि त्ति।
१५. वही, गा. २२५९ व उसकी चूर्णि। ८. वही, पृ. ३८६,४०९
१६. वही, गा. २२६७