Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
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निसीहज्झयणं
१७९
उद्देशक८:टिप्पण
२२,२३. तृणशाला, तृणगृह-दर्भ आदि घास रखने के कुड्यरहित एवं कुड्यसहित स्थान ।'
२४,२५. तुसशाला, तुसगृह-मूंग, शालि आदि के छिलके रखने के कुड्यरहित एवं कुड्यसहित स्थान ।
२६,२७. बुसशाला, बुसगृह-धान का भूसा (कुतर), जिसे पशु खाते हैं, उसे रखने की शाला एवं गृह ।'
२८,२९. यानशाला, यानगृह-शकट आदि यान को रखने की शाला और गृह।
३०,३१. युग्यशाला, युग्यगृह-युग्य का अर्थ है शिविका, गोल्लदेश में प्रसिद्ध दो हाथ लम्बा चौड़ा यान-विशेष। उसे रखने की शाला और गृह क्रमशः युग्यशाला और युग्यगृह।
३२,३३. पण्यशाला, पण्यगृह-जहां विक्रेय भांड रखे जाएं, वह हाट और गृह (दूकान)।
३४,३५. परियागशाला, परियागगृह-चूर्णिकार के अनुसार पाषण्डी (अन्यतीर्थिकों) के आवसथ को परियागशाला एवं परियागगृह कहा जाता है। किन्तु प्रथम सूत्र में परियावसह' पाठ है फिर प्रस्तुत सूत्र में 'परियागसालंसि' एवं परियागगिहंसि पाठ क्यों? पण्यशाला एवं पण्यगृह के साथ यदि परियाण' पाठ होता तो उसका अर्थ 'विनिमय' होता। किन्तु ऐसा किसी आदर्श में उपलब्ध नहीं है। अतः अर्थसंगति की दृष्टि से विनिमय के अर्थ में 'परियाग' शब्द को देशी माना जा रहा है। अतः प्रस्तुत प्रसंग में इनका अर्थ विनिमय शाला और विनिमय गृह होना चाहिए।
३६,३७. कुप्ययशाला, कुप्यगृह-अभिधानचिन्तामणि के अनुसार कुप्यशाला का अर्थ है-सोने, चांदी से भिन्न धातु (ताम्बे आदि से निर्मित्त गृहोपकरण) रखे जाने वाला घर। प्राकृत कोश में इसका अर्थ है-गृहोपकरण रखने का स्थान।' शाला एवं गृह क्रमशः पूर्ववत् ज्ञातव्य हैं।
३८,३९. गौशाला, गौगृह-गायों आदि का कुड्यरहित एवं १. निभा. २ चू.पृ. ४३३-दब्भादितणट्ठाणं अधोपगासं तणसाला। २. वही-सालिमादितुसट्ठाणं तुससाला। ३. पाइय.-भुस (शब्द) ४. निभा. २, चू.पृ. ४३३-जुगादि जाणाण अकुड्डा साला, सकुठं
गिह। ५. अणु.,पृ.२३९
निभा. २, चू.पृ. ४३३-विक्केयं भंडं जत्थ छूट चिट्ठति सा साला
गिहं वा। ७. वही-पासण्डिणो परियागा.....। ८. अचि. ४।१२। ९. पाइय. १०. निभा. भा. २, चू.पृ. ४३३-गोणादि जत्थ चिटुंति सा गोसाला
गिहं च।
कुड्यसहित स्थान क्रमशः गौशाला एवं गौगृह कहलाता है।
४०,४१. महाकुल, महागृह-इभ्यकुल अथवा बहुसंख्यक लोगों का परिवार और बड़ा (विशाल) घर।"
४२. अनार्य कथा-अनार्य लोगों के योग्य कथा अर्थात् काम-कथा।१२
४३. निष्ठुर कथा-अप्रिय बात, जैसे-भल्लीगृहोत्पत्ति की कथा।३
४४. अश्रमणप्रायोग्यकथा-वह वार्ता, जो संयम के लिए उपकारी (उपादेय) न हो, देशकथा, भक्तकथा आदि। २. सूत्र १०
पूर्वोक्त सूत्रों में एक स्त्री के साथ रहने, खाने-पीने यावत् अश्रमणप्रायोग्य वार्तालाप करने का प्रायश्चित्त बतलाया गया है। प्रस्तुत सूत्र में अनेक स्त्रियों के मध्य, उनसे परिवृत होकर रात्रि अथवा विकालवेला में अपरिमित कथा करने का प्रायश्चित्त प्रज्ञप्त है। अर्थात् जहां केवल स्त्रियां हो अथवा जिस परिषद् में स्त्रियों की बहुलता हो, वहां रात्रि या विकाल वेला में भिक्षु अधिकतम पांच प्रश्नों का उत्तर दे, अधिक लम्बे काल तक धर्मकथा भी न करे। दशवैकालिक सूत्र की हारिभद्रीया वृत्ति, उत्तराध्ययन सूत्र की चूर्णि तथा स्थानांग सूत्र की अभयदेवीया वृत्ति से भी इसी अर्थ का संपुष्टि होती है।५ भाष्यकार के अनुसार इससे स्त्रियों के ज्ञातिजनों में अप्रीति, शंका आदि दोष तथा अन्य आत्म-पर-उभय समुत्थ दोष संभव हैं। यदि अपवाद में कहीं केवल स्त्रियों के मध्य धर्मकथा करनी आवश्यक हो तो उनके अत्यधिक निकट न बैठे, तरुणी स्त्रियों पर दृष्टि न टिकाए, वृद्धा स्त्रियों की तरफ ईषद् दृष्टिक्षेप करता हुआ संयतभाव से वैराग्यपूर्ण कथा करे। शब्द विमर्श
१. स्त्रीमध्यगत-जिसके उभय पार्श्व में स्त्रियां बैठी हो।१८
२. स्त्रियों से संसक्त-स्त्रियों के ऊरु, कोहनी आदि से ११. वही-मह पाहण्णे बहुत्ते वा, महंतं वा गिह महागिह, बहुसुवा उच्चारएस
महागिह। महाकुलं पिइन्भकुलादी पाहण्णे बहुजण आइण्णं बहुत्ते। १२. वही, पृ ४१६-अणारियाण जोम्गा अणारिया, सा य कामकहा। १३. वही, पृ. ४१५-णिट्ठरंणाम भल्लीघरकहणं। १४. वही-देसभत्तकहादी जा संजमोवकारिका ण भवति, सा सव्वा
असमणपाउम्गा। १५. (क) दसवे. ८/४२
(ख) उत्तर.१६/४ की चूर्णि
(ग) ठाणं ९/३ की वृत्ति १६. निभा. गा. २४३३ व उसकी चूर्णि। १७. वही, गा. २४३५ व उसकी चूर्णि। १८. वही, पृ. ४३४-इत्थीसु उमओ ठियासु मझं भवति । १९. वही-उरुकोप्परमादीहिं संघट्टतो संसत्तो भवति, विट्ठीए वा परोप्यरं
संसत्तो।