Book Title: Nisihajjhayanam
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Srutayashashreeji Sadhvi
Publisher: Jain Vishva Bharati
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उद्देशक ६ : सूत्र ६-११
६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अंगादाणं कक्केण वा लोद्वेण वा पउमचुणेण वा पहाणेण वा सिणाणेण वा वण्णेण वा चुण्णेण वा उव्वट्टेति वा परिवट्टेति वा, उव्वट्टेतं वा परिवर्दृतं वा सातिज्जति ॥
७. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अंगादाणं सीओदगवियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिज्जति ।।
८. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडिया अंगादाणं णिच्छल्लेति, णिच्छल्लेंतं वा सातिज्जति ।।
९. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडिया अंगादाणं जिंघति, जिघंतं वा सातिज्जति ।
१०. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अंगादाणं अण्णयरंसि अचित्तंसि सोयंसि अणुपवेसेत्ता सुक्कपोग्गले णिग्घायति, णिग्घायंतं वा सातिज्जति ।।
अवाउडि-पदं
११. जे भिक्खू माउग्गामं मेहुणवडियाए अवाउडिं सयं कुज्जा, सयं बूया वा, करेंतं वा वयंतं वा सातिज्जति ।।
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यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया अंगदान कल्केन वा लोध्रेण वा पद्मचूर्णेन वा 'पहाणेण' वा स्नानेन वा वर्णेन वा चूर्णेन वा उद्वर्तते वा परिवर्तते वा, उद्वर्तमानं वा परिवर्तमानं वा स्वदते ।
यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया अंगादानं शीतोदकविकृतेन वा उष्णोदकविकृतेन वा उत्क्षालयेद् वा प्रधावेद् वा, उत्क्षालयन्तं वा प्रधावन्तं वा स्वदते ।
यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया अंगादानं 'णिच्छल्लेति', “णिच्छल्लेंतं’ वा स्वदते ।
यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया अंगादानं जिघ्रति, जिघ्रन्तं वा स्वदते ।
यो भिक्षुः मातृग्रामस्य मैथुनप्रतिज्ञया अंगादानम् अन्यतरस्मिन् अचित्ते स्रोतसि अनुप्रवेश्य शुक्रपुद्गलान् निर्घातयति, निर्घातयन्तं वा स्वदते ।
अप्रावृता-पदम्
यो भिक्षुः मातृग्रामं मैथुनप्रतिज्ञया प्रावृ स्वयं कुर्याद्, स्वयं ब्रूयाद् वा, कुर्वन्तं वा वदन्तं वा स्वदते ।
निसीहज्झयणं
६. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म सेवन के संकल्प से अंगादान का कल्क, लोध, पद्मचूर्ण, ण्हाण, स्नानचूर्ण, वर्ण अथवा चूर्ण से उद्वर्तन करता है अथवा परिवर्तन करता है और उद्वर्तन अथवा परिवर्तन करने वाले का अनुमोदन करता है ।
७. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म सेवन के संकल्प से अंगादान का प्रासुक शीतल जल से अथवा प्रासुक उष्ण जल से उत्क्षालन करता है अथवा प्रधावन करता है और उत्क्षालन अथवा प्रधावन करने वाले का अनुमोदन करता है।
८. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म सेवन के संकल्प से अंगादान का निश्छलन करता है अथवा निश्छलन करने वाले का अनुमोदन करता है।
९. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म- सेवन के संकल्प से अंगादान को सूंघता है अथवा सूंघने वाले का अनुमोदन करता है।
१०. जो भिक्षु स्त्री को हृदय में स्थापित कर अब्रह्म सेवन के संकल्प से अंगादान को अचित्त स्रोत में प्रविष्ट कर शुक्र पुद्गलों को निकालता है अथवा निकालने वाले का अनुमोदन करता है।
अप्रावृत-पद
११. जो भिक्षु अब्रह्म - सेवन के संकल्प से मातृग्राम को स्वयं अप्रावृत (वस्त्ररहित) करता है अथवा स्वयं अप्रावृत होने का कहता है और करने अथवा कहने वाले का अनुमोदन करता है।
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