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षड्विंशतितमं पर्व
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राजहंसः कृतो 'पास्यामलङवयां विधृतायतिम् । जयलक्ष्मीमिव स्फीताम् आत्मीयामधिगामिनीम् । ।१३८ ।। विलसत्पद्मसम्भूतां जनतानन्ददायिनीम् । जगद्भोग्यामिवात्मीयां श्रियमायतिशालिनीम् ॥ १३६ ॥ विजयार्थ तटाकान्त कृतश्लाघा" सुरंहसम् । श्रभग्नप्रसरां दिव्यां निजामिव पताकिनीम् ॥१४०॥ व्यालोलोमिक रास्पृष्टः स्वतीरवनपादपैः । दधद्भिरङकुरोर्भेदम् श्राश्रितां कामुकैरिव ॥ १४१ ॥ रोघोलतालयासीनान् स्वेच्छया सुरदम्पतीन् । हसन्तीमिव सुध्वानैः शीकरोत्थविसारिभिः ॥ १४२॥ किन्नराणां कलक्वाणैः समानरुपवीणितैः । सेव्यपर्यन्तभूभाग लतामण्डपमण्डनाम् ॥१४३॥
के द्वारा उपासित होती है उसी प्रकार वह भी तीर्थ अर्थात् पवित्र तीर्थ स्थानकी इच्छा करनेवाले पुरुषों के द्वारा उपासित होती अथवा किनारेपर रहनेवाले मनुष्य उसमें स्नान आदि किया करते थे, जिस प्रकार जिनवाणी से गंभीर शब्दों की उत्पत्ति होती है उसी प्रकार उससे भी गंभीर अर्थात् बड़े जोरके शब्दों की उत्पत्ति होती थी, और जिस प्रकार जिनवाणी मल अर्थात् पूर्वापर विरोध आदि दोषोंसे रहित होती है उसी प्रकार वह भी मल अर्थात् कीचड़ आदि गंदले पदार्थों से रहित थी । - अथवा जो अपनी ( भरतकी) विजयलक्ष्मी के समान जान पड़ती थी क्योंकि जिस प्रकार विजयलक्ष्मीकी उपासना राजहंस अर्थात् बड़े बड़े राजा लोग करते थे उसी प्रकार उस नदी की भी उपासना राजहंस अर्थात् एक प्रकारके हंस विशेष करते थे, जिस प्रकार जयलक्ष्मी का कोई उल्लंघन - अनादर नहीं कर सकता था उसी प्रकार उस नदीका भी कोई उल्लंघन नहीं कर सकता था, जयलक्ष्मीका आयति अर्थात् भविष्यत्काल जिस प्रकार स्पष्ट प्रकट था इसी प्रकार उसकी आयति अर्थात् लम्बाई भी प्रकट थी, जयलक्ष्मी जिस प्रकार स्फीत अर्थात् विस्तृत थी उसी प्रकार वह भी विस्तृत थी और जयलक्ष्मी जिस प्रकार समुद्र तक गई थी उसी प्रकार वह गंगा भी समुद्र तक गई हुई थी । अथवा जो भरतकी राज्यलक्ष्मी के समान मालूम होती थी क्योंकि जिस प्रकार भरतकी राज्यलक्ष्मी शोभायमान पद्म अर्थात् पद्म नामकी निधि से उत्पन्न हुई थी उसी प्रकार वह नदी भी पद्म अर्थात् पद्म नामके सरोवरसे उत्पन्न हुई थी, भरतकी राज्य लक्ष्मी जिस प्रकार जनसमूहको आनन्द देनेवाली थी उसी प्रकार वह भी जनसमूहको आनन्द देनेवाली थी, भरतकी राज्यलक्ष्मी जिस प्रकार जगत् के भोगने योग्य थी उसी प्रकार वह भी जगत् के भोगने योग्य थी, और भरतकी लक्ष्मी जिस प्रकार आयति अर्थात् उत्तरकालसे सुशोभित थी उसी प्रकार वह आयति अर्थात् लम्बाईसे सुशोभित थी । अथवा जो भरतकी सेनाके समान थी, क्योंकि जिस प्रकार भरतकी सेना विजयार्थ पर्वतके तटपर आक्रमण करनेसे प्रशंसाको प्राप्त हुई थी उसी प्रकार वह नदी भी विजयार्ध पर्वतके तटपर आक्रमण करने से प्रशंसाको प्राप्त हुई थी (गङ्गा नदी विजयार्थ पर्वतके तटको आक्रान्त करती हुई बही है), जिस प्रकार भरतकी सेनाका वेग तेज था उसी प्रकार उस नदीका वेग भी तेज था । जिस प्रकार भरत की सेना के फैलावको कोई नहीं रोक सकता था उसी प्रकार उसके फैलावको भी कोई नहीं रोक सकता था और भरतकी सेना जिस प्रकार दिव्य अर्थात् सुन्दर थी उसी प्रकार वह नदी भी
१ सेवाम् । २ विवृतायतीम् ल० । ३ पद्महृदये ज्ञाताम् । पक्षे निधिविशेषजाताम् । ४ आक्रमण । ५ श्लाध्यां ल०, इ० । ६ सुवेगाम् । ७ रोमाञ्चम् । ८ तीरलतागृहस्थितान् । सुस्वानैः ल । स्वस्वानः इ०
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