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म.श्रे.
दीधी बधाइ मुनी आवियारे । हर्ष्या सुणी आपाररे ॥ आ ॥ ५ ॥ चतुरंगणी सैन्या सजीरे | राणी कुँवर सहू साथरे || अन्य घणा चाल्या हर्षधीरे || दर्शण करण सनाथरे आ ॥ ६ ॥ खाती काष्ट लेवा जावतोरे । जाता देखी बहु लोकरे ॥ मुनी उपदेश सुणवा तणोरे । पद्मने जाग्यो शोकरे ॥ आ ॥ ७ ॥ आया सहू मुनी बंधीयारे । धर्म श्रवण ने काजरे ॥ जग हित करवा कारणेरे । दे उपदेश मुनिराजरे || आ ॥ ८ ॥ धर्म एक सुख दायनोरे । जेहनो दया छे मूल रे || औलखो जीव अजीवनेरे ॥ ज्यों होवे सुख को सूलरे ॥ आ ॥ ९ ॥ जीव कह्या छे कायना रे । पृथवी अप तेउवायरे ॥ विना शपति ने त्रस छेरे । सुख दिया सुख पायरे ॥ आ ॥ १० ॥ निजातम सम जाणिये रे जीव भरी जेह देहरे ॥ चार स्थावर में असंख्य छेरे । हरी में अनंता लेहरे ॥ आ ॥ ११ ॥ विनाशपति नर सारखी रे | कही श्री भगवान रे || उत्पन्न तरुण ने वृधता । रोग | संजोग सेनाण रे || आ ॥ १२ ॥ कषाय संज्ञा चउ अछेरे । लाजणी अर्क देखापरे ॥ और अनेक हरी विषेरे । मनुष्य शार्हष्य जणायरे ॥ आ ॥ १३ ॥ तिण कारण नहीं दुह | वियेरे । जो इच्छो निज हितरे ॥ पद्म सुणी ने चमकिवोरे । चिंते ज्ञान ते चितरे ॥ आ ॥ १४ ॥ मुज जाती कर्म एह छेरे । कीजिये कांह उपायरे ॥ ऋषिजी कहे हरीया काष्ट नेरे । बन्धव काटणो नायरे ॥ आ ॥ १५ ॥ तेहीज लीधी आखडीरे । दृढ चडेत प्रणामरे ॥
खण्ड १