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हा कार ते ॥ सुणो ॥ २२ सुणो ॥ हिवे जोवो वक्त की बात । कयां सहूं सिद्ध थावह ॥ सुणो ॥ णो ॥ ढाल पंचमी सुविचार | अमोलक ऋषि गावई ॥ सुणो भाईरे ॥ २३ ॥ * ॥ दोहा ॥ हाक सुणी भाई तणी । वहता मदन कहे एम ॥ कह्या कार्य सह सिद्ध कर । फिर मिलस्यूं भर क्षेम ॥ १ ॥ चल्या आगे मझधार में । चिंते जो आवे | खाड || कदाक तिण माहें पहूं । तो भांगे मुज हाड ॥ २ ॥ तब तिहां दामनी तेजमें। काष्ट वहतो जोय ॥ साहस घर तेहने ग्रह्यो । आधार अधिको होय ॥ ३ ॥ चड बैठ्यो तस ऊपरे । जिम घोडे असवार || पाघडी बांधी काष्ट मुख । साही बाग तुखारे ॥ ४ ॥ | जलथल रचना देखता ॥ गाता जावे गीत ॥ हिवे सानिध करता मिले । ते सुण जो घर प्रीत ॥ ५ ॥ ढाल ६ ठी ॥ कामणगारो कूकडोरे ॥ यह० ॥ तिण अवसर श्री पुरमारे । पद्म खाती गुणवंतरे ॥ रहे करे कुल वैपारनेरे । सोमा नारी सोहंतरे ॥ १ ॥ आखडी आइ खडी रहेरे || आं ॥ पण पूर्व अंतराय थीरे । द्रव्य घणो नहीं पासरे ॥ | दुष्कर करे आजीविका रे इम दिनवीते तासरे ॥ आखडी ॥ २ ॥ एकदा सुभाग्यो दयेरे । धर्म घोष ऋषिराजरे ॥ बहु साधू संग परिवर्यारे । तारे जग जल झाजरे ॥ आ ॥ ३ ॥ आया श्रीपुर उद्यान मारे । उतर्या आज्ञा लेयरे ॥ तप संयम रत्त मुनीबरारे । मोक्ष सामे चित देयरे ॥ आ ॥ ४ ॥ माली लेइ भेटणारे । आया रिपुजय दरबाररे ॥
१ घोडी की लगाम ज्यो