Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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पृ. सं.
ऋजुसत्र नयकी अपेक्षा विचार शब्दनयकी अपेक्षा विचार प्रकृतमें भावस्थानसे प्रयोजन है इसका
खुलासा आगे सूत्रगाथाओंकी अपेक्षा स्पष्टीकरणकी
( ४८ ) पृ. सं. १७५ चारों ही क्रोधस्थानोंका कालकी अपेक्षा १७६ उदाहरणों द्वारा अर्थ साधन
शेषका भावकी अपेक्षा उदाहरणों द्वारा
अर्थसाधन
उदकराजि आदिके समान किस क्रोधका १७८
संस्कार कितने काल तक रहता है
शेषको अनुमानसे इसी प्रकार जाननेकी १७८ सूचना
. १८३
१७७
१७९
सूचना
प्रारम्भको ४ गाथाऐं १६ स्थानोंके उदा
हरणपूर्वक अर्थ साधनोंमें आई हैं इस तथ्यका निर्देश
मङ्गलाचरण क्रोधकषायके पर्यायवाची नाम मानकषायके ,. "
व्यञ्जन-अर्थाधिकार
१८५ मायाकषायके पर्यायवाची नाम १८७ लोभकषायके ,, ,
१८८ १८९
सम्यक्त्व-अर्वाधिकार मंगलाचरण
१९३ दूसरी सूत्रगाथाकी अर्थविभाषा २०७-२२० अधःप्रवृत्तकरणके प्रथम समयमें चार सूत्र
उक्त जीवके प्रकृति आदिके भेदसे चारों गाथाएँ कथन योग्य १९४ प्रकारके सत्कर्मका विचार
२०७ अवतार चार प्रकारका
१९४ उक्त जीवके प्रकृति आदि भेदरूप चार उपक्रमके पाँच प्रकार
१९४ प्रकारके बन्धका निर्देश आनुपूर्वीके तीन भेद
१९४ उक्त जीवके उदयानुदयरूपसे उदयावलिमें वक्तव्यताके तीन भेद
प्रविष्ट होनेवाले कर्मोंका निर्देश अनुगमका लक्षण
१९४ यह जीव किन कर्मोंकी उदीरणा करता है उनमें से प्रथम सूत्रगाथा और उसकी व्याख्या १९५ इसका निर्देश
१९६ उक्त उदय-उदीरणाविषयक आदेश- .. तीसरी १९७ प्ररूपणाका निर्देश
२१८ चौथी
, १९८ स्थिति-अनुभाग-प्रदेश उदीरणाका निर्देश २२० प्रथम सूत्रको गाथाकी अर्थविभाषा १९९-२०६ तीसरी सूत्रगाथाकी अर्थविभाषा २२१-२३० दर्शनमोहका उपशम करनेवालेका परिणाम
दर्शनमोहका उपशम करनेके पूर्व ही . कैसा होता है इसका निर्देश
. २००
किन कर्मोंकी बन्धव्युच्छित्ति हो योग कौन होता है ,
२०१
जाती है इस विषयका निर्देश २२१ कषाय कौन और कैसी होती है इसका
प्रकृत ३४ बन्धापसरणोंका निर्देश निर्देश
२०२ आदेशकी अपेक्षा प्रकृतिबन्धव्युच्छित्तिका उपयोग कौन होता है इसका निर्देश
२०३
निर्देश लेश्या कौन होती है
२०४ उक्त जीवके उदयव्यच्छित्तिको प्राप्त वेद कौन होता है ,
२०५ होनेवाली प्रकृतियोंका निर्देश
दूसरी
२२१