Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ उवजोगो ७
समाणासु कसायोवजोगवग्गणासु केवचिरमुवजुत्ता होंति त्ति अज्झाहारं काढूण सुत्तट्ठवक्खाणादो । पुणो एत्थेव अंतराणुगमस्स वि अंतब्भावो वत्तव्वो, कालंतराणमण्णोण्णाणुगयत्तदंसणा दो । 'केवडिगा च कसाये त्ति' एदेण वि सुत्तावयवेण चदुकसायोवजुत्ताणं भागाभागानुगमो परुविदो, सव्वजीवाणं केवडिया भागा एक्केकम्मि कमाए उवजुत्ता होंति त्ति सुत्तत्संबंधावलंबणादो । 'के के च विसिस्सदे केण' एदेण वि कसायोवजोगजुत्ताणमप्पा बहुअपरूवणा सूचिदा । के के कसायोवजुत्तजीवा केण कसायोवजुत्तजीवरासिणा सह सणियासिज्जमाणा केण गुणगारेण भागहारेण वा विसिस्संते अहिया होंति ति सुत्तत्थावलंबणादो । एवमेदेण गाहासुतेण कसायो जुत्तजीवाणं दव्यंपमाणाणुगमो कालाणुगमो भागाभागाणुगमो अप्पा बहुगागमो च मुत्तकंठं परूविदाणि । सेसाणि चत्तारि अणियोगद्दाराणि सूचिदाणि । संपहि छडीए गाहाए पडिबद्धत्थ परूवणमवयारणं कस्सामो । तं जहा1
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(१५) जे जे जम्हि कसाए उवजुत्ता किण्णु भूदपुव्वा ते । होहिंति च उवजुत्ता एवं सव्वत्थ बोद्धव्वा ||६८ ||
$ १४. एसा गाहा वट्टमाणसमयम्मि कोहादिकसायोवजुत्ताणमणंताणं जीवाणमदीदाणागदकाले तेत्तियमेत्ताणं चेव णिरुद्धकसायोवजागेण परिणमण संभवासंभवयक कालानुगम सूचित किया गया है, क्योंकि 'सरिसीसु' अर्थात् समान जो कषायोपयोगवर्गणाएं हैं उनमें कितने काल तक जीव उपयुक्त होते हैं इस प्रकार अध्याहार करके सूत्रके अर्थका व्याख्यान किया है । पुनः यहींपर अन्तरानुगमका भी अन्तर्भाव कहना चाहिए, क्योंकि कालानुयोगद्वार और अन्तरानुयोगद्वारका परस्पर अनुगतपना देखा जाता है। 'केवडिगा च कसाये' सूत्र के इस अवयवद्वारा चारों कषायोंमें उपयुक्त हुए जीवोंके भागाभागानुगमका कथन किया गया है, क्योंकि सब जीवोंका कितना-कितना भाग एक-एक कपाय में उपयुक्त है, इसप्रकार यहाँ सूत्रार्थके सम्बन्धका अवलम्बन लिया गया है । 'के के च विसिस्सदे ण' इस द्वारा भी कषायों में उपयुक्त हुए जीवोंके अल्पबहुत्वका कथन किया गया है । कषायों में उपयुक्त हुए कौन-कौन जीव कषायों में उपयुक्त हुई किस जीवराशिके साथ सन्निकर्ष को प्राप्त होकर किस गुणकार या भागाहार के द्वारा विशेषताको प्राप्त होते हैं अर्थात् अधिक होते हैं इस प्रकार यहाँ सूत्रार्थका अवलम्बन लिया गया है । इस प्रकार इस गाथासूत्र के द्वारा कपायों में उपयुक्त हुए जीवोंके द्रव्यप्रमाणानुगम, कालानुगम, भागाभागानुगम और अल्पबहुत्वानुगमका मुक्तकण्ठ कथन किया गया है तथा शेष चार अनुयोगद्वार सूचित किये गये हैं । अब छठी गाथासे सम्बन्ध रखनेवाले अर्थका कथन करनेके लिए अवतार करेंगे । यथा
* जो जो जीव जिस कषायमें उपयुक्त हैं वे सब जीव क्या अतीत कालमें उसी कपाय में उपयुक्त रहे हैं तथा क्या आगामी कालमें भी उसी कषायमें उपयुक्त रहेंगे ! इसी प्रकार सर्वत्र जानना चाहिए || ६८ ||
$ १४. वर्तमान समयमें जो अनन्त जीव क्रोधादि कषायों में उपयुक्त हैं वे सब उतने ही जीव अतीत और अनागत कालमें भी विवक्षित कषायोंके उपयोगरूपसे परिणमन करते