Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
सिरि-जइवसहाइरियविरइय-चुण्णिसुत्तसमणिदं
सिरि-भगवंतगुरणहर भडारनोवइट्ठ
कसाय पा हुर्ड
तस्स
सिरि-वीरसेरणाइरियविरइया टीका
जयधवला
तत्थ
चाणमिदि अट्टमो अत्थाहियारो
-::+
णमो अरहंताणं०
णिङ्कवियचउट्ठाणं पणट्ठकम्मट्ठदुट्ठखिचे । वोच्छामि चउट्ठाणं जिणपरमेट्ठि पणमियूण ॥ १ ॥
जिसने अनुभागसम्बन्धी चार स्थानोंको निष्ठापितकर लिया है और जिसने आठ कर्मरूपी दुष्ट शत्रुकी चेष्टाको नष्ट कर दिया है. ऐसे श्री जिन परमेष्ठीको प्रणामकर चतुःस्थान अनुयोगद्वारका कथन करता हूँ ॥ १ ॥