Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ सम्मत्ताणियोगद्दारं १०
* तदो उवसमसम्माइट्ठि - वेदयसम्माइट्ठि- सम्मामिच्छाइट्ठीहिं एयजीवेण सामित्तं कालो अंतरं णाणाजीवेहिं भंगविचओ कालो अंतरं अप्पाबहु चेदि ।
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$ २१४. तदो सुत्तफासादो अणंतरमिदाणिं एयजीवेण सामित्तादीणि अप्पाबहुअपजवसाणाणि अणियोगद्दाराणि जहागममेत्थ णेदव्वाणि ति सुत्तत्थसंबंधो । ताणि पुण अणियोगद्दाराणि किंविसयाणि त्ति भणिदे सम्मत्तमग्गणावयवभूदउवसमसम्माइडिआदिविसयाणि त्ति जाणावणट्ठमुवसमसम्माइट्टि - वेदगसम्माइट्ठि- सम्मामिच्छाइट्ठीहिं ति णिeिs | देसि सम्माइट्टिभेदेहिं विसेसियाणि एदाणि अणियोगद्दाराणि दव्वाणि त्ति भणिदं होदि । एत्थ खइयसम्मादिट्ठीणं पि णिसो किमहं ण कीरदे १ ण, खइयसम्माइट्ठी मट्ठहिं अणियोगद्दारेहिं पुरदो दंसणमोहक्खवणाए भणिस्समाणत्तादो । तम्हा उवसमसम्माइ ट्ठि-वेदयसम्माइट्ठि सम्मामिच्छादिट्ठीणमेदेहिं अणियोगद्दारेहिं देसामासयभावेण सूचिदभागाभाग परिमाण खेत्त - फोसणसहिदेहिं सवित्थरमेत्थ परूवणा कायव्वा, तप्परूवणाए विणा पयदत्थविसयणिण्णयाणुववत्तीदो । एदेसिं च परूवणा सुगमा ति ण एत्थ तप्पवंचो कीरदे ।
उसके बाद उपशमसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका आलम्बन लेकर एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्व, काल, अन्तर, नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, काल, अन्तर और अल्पबहुत्व जानने चाहिए ।
$ २१४. ' तथा ' अर्थात् सूत्रस्पर्श के अनन्तर इस समय एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्व से लेकर अल्पबहुत्व पर्यन्त अनुयोगद्वार आगमके अनुसार यहाँ कथन करने योग्य हैं यह सूत्रका अर्थके साथ सम्बन्ध है । उन अनुयोगद्वारोंका विषय क्या है ऐसा पूछने पर सम्यक्त्व मार्गणा के अवयवरूप उपशमसम्यग्दृष्टि आदि विषय हैं इस बातका ज्ञान कराने के लिए सूत्रमें ‘उवसमसम्माइट्ठि-वेदगसम्माइट्ठि सम्मामिच्छाइट्ठीहिं' यह वचन कहा है । सम्यग्दृष्टि के इन भेदोंसे युक्त ये अनुयोगद्वार कहने चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
शंका- यहाँ पर क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंका भी निर्देश किसलिए नहीं करते हैं ?
समाधान — नहीं, क्योंकि आठ अनुयोगद्वारोंके आलम्बनसे क्षायिक सम्यग्दष्टियोंका प्रयाख्यान आगे दर्शनमोहकी क्षपणा अनुयोगद्वार में करेंगे ।
इसलिए उपशमसम्यग्दष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंकी देशामर्षकरूपसे सूचित हुए भागाभाग, परिमाण, क्षेत्र और स्पर्शन सहित इन अनुयोगद्वारोंके आलम्बनसे विस्तारके साथ यहाँ प्ररूपणा करनी चाहिए, क्योंकि यह प्ररूपणा किये बिना प्रकृत अर्थविषयक निर्णय नहीं बन सकता । इनकी प्ररूपणा सुगम है, इसलिये यहाँ पर उसका विस्तार नहीं करते हैं ।
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