Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 379
________________ पत्थमद सुत्त । ३२८ जयघवलासहिदे कसायपाहुडे [सम्मत्ताणियोगदारं ___* एदेसु अणियोगदारेसु वण्णिदेसुदसणमोहउवसामणे त्ति समत्तमणियोगद्दारं। ६२१६. गयत्थमेदं सुत्तं । तदो दंसणमोहउवसामणाए पण्णारसण्हं.. गाहासुत्ताणमत्थविहासा समत्ता होइ । इन अनुयोगद्वारोंका कथन करने पर दर्शनमोह उपशामना नामक अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। $ २१६ यह सूत्र गतार्थ है। ... इसके बाद दर्शनमोहउपशामनासम्बन्धी पन्द्रह गाथासूत्रोंके अर्थका विशेष व्याख्यान समाप्त होता है।

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