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पत्थमद सुत्त ।
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जयघवलासहिदे कसायपाहुडे [सम्मत्ताणियोगदारं ___* एदेसु अणियोगदारेसु वण्णिदेसुदसणमोहउवसामणे त्ति समत्तमणियोगद्दारं। ६२१६. गयत्थमेदं सुत्तं ।
तदो दंसणमोहउवसामणाए पण्णारसण्हं..
गाहासुत्ताणमत्थविहासा समत्ता होइ । इन अनुयोगद्वारोंका कथन करने पर दर्शनमोह उपशामना नामक अनुयोगद्वार समाप्त हुआ।
$ २१६ यह सूत्र गतार्थ है। ... इसके बाद दर्शनमोहउपशामनासम्बन्धी पन्द्रह गाथासूत्रोंके अर्थका
विशेष व्याख्यान समाप्त होता है।