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गाथा १०९1.
दसणमोहोवसमणा २१५. संपहि पयदत्थोवसंहारकरणमुत्तरं सुत्तमाह
विशेषार्थ—यहाँ पर जिन अनुयोगद्वारोंका संकेत किया है उनके आलम्बनसे उपशमसम्यग्दृष्टि आदि जीवोंका कुछ व्याख्यान करते हैं। इतना विशेष जानना कि उपशमसम्यक्त्वसे प्रथमोपशम सम्यक्त्वका ही ग्रहण किया है। १ स्वामित्व-अपने-अपने भावसे युक्त जीव उपशमसम्यक्त्व आदिके स्वामी हैं। २ एक जीवकी अपेक्षा काल-उपशम सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूते है। वेदक सम्यक्त्वका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल छयासठ सागरोपमप्रमाण है। ३ अन्तर-(प्रथमोपशमकी अपेक्षा) उपशम सम्यक्त्वका जघन्य अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है, वेदक सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य अन्तर काल अन्तमुहर्त है और तीनोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अर्ध पुद्गलपरिवर्तन कालप्रमाण है। आगेके अनुयोगद्वार नाना जीवोंकी अपेक्षा हैं। ४ भंगविचय-उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं है, क्योंकि ये सान्तर मार्गणाएं हैं। वेदकसम्यग्दृष्टि जीव सदा काल नियमसे हैं, क्योंकि यह निरन्तर मार्गणा है । ५ संख्या-उक्त तीनों मार्गणावाले जीव प्रत्येक पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । ६ क्षेत्र-(प्रथमोपशम सम्यक्त्वकी अपेक्षा) उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंका स्वस्थानकी अपेक्षा वेदक सम्यग्दृष्टियोंका स्वस्थान, मारणान्तिक समुद्घात और उपपाद पदकी अपेक्षा तथा सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका स्वस्थानकी अपेक्षा क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। प्रथमोपशम सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके काल में मरण नहीं होता, इसलिए इनका क्षेत्र मात्र स्वस्थानकी अपेक्षा कहा है । ७ स्पर्शन-उपशमसम्यग्दृष्टि
और सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और विहारवत्स्वस्थानको अपेक्षा अतीत स्पर्शन त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण है। वेदक सम्यग्दृष्टियों का वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अतीत स्पर्शन विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिक समुद्धातकी अपेक्षा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण है। तथा उपपादपदकी अपेक्षा अतीत स्पर्शन त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण है । ८ काल-उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तथा वेदकसम्यग्दृष्टियोंका काल सर्वदा है। ९ अन्तर-उपशमसम्यग्दृष्टियोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल सात दिन-रात है। सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तथा वेदकसम्यग्दृष्टियोंका अन्तरकाल नहीं है । १० भागाभाग-उपशमसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव सब संसारी जीवराशिके अनन्तवें भागप्रमाण हैं। ११ अल्पबहुत्व-उक्त तीनों राशियोंमें सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे उपशमसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणे हैं। तथा उनसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणे हैं।
$ २१५. अब प्रकृत अर्थका उपसंहार करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं