Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [सम्मत्ताणियोगद्दारं १० पारंभं परूविय संपहि एत्थेवाउगवजाणं कम्माणं गुणसेढिणिक्खेवो वि आढत्तो त्ति जाणावणट्ठमुत्तरसुत्तमोडण्णं
* अपुव्यकरणस्स चेव पढमसमए आउगवजाणं कम्माणं गुणसेढिणिक्खेवो अणियट्टिअद्धादो अपुव्वकरणद्धादो च विसेसाहिओ ।
१३५. तम्मि चेवापुव्वकरणस्स पढमसमए आउगवजाणं गुणसेढिणिक्खेवो वि आढत्तो ति भणिदं होइ । किमट्ठमाउगस्स गुणसेढिणिक्खेवो णत्थि ति चे? ण, सहावदो चेव । तत्थ गुणसेढिणिक्खेवपवुत्तीए असंभवादो। सो वुण' गुणसेढिणिक्खेवो केत्तिओ होइ चि पुच्छाए अणियट्टिकरणद्धादो अपुव्वकरणद्धादो च विसेसाहियो त्ति णिद्दिष्टुं । एत्थतण अपुल्याणियट्टिकरणद्धाणं समुदिदाणं पमाणमंतोमुहुत्तमेत्त होइ । तत्तो विसेसाहिओ एदस्स गुणसेढिणिक्खेवस्सायामो ति वुत्त होइ । केत्तियमेत्तो विसेसो ? अणियट्टिअद्धाए संखेज्जदिभागमेत्तो ? कुदो एदं परिच्छिज्जदे ? उवरि भण्णमाणअप्पाबहुअसुत्तादो । स्थितिबन्धापसरण और अनुभागबन्धापसरणका युगपत् प्रारम्भकर अब यहींपर आयुकर्मके अतिरिक्त कर्मोंका गुणश्रेणिनिक्षेप भी प्रारम्भ करता है इस बातका ज्ञान करानेके लिये आगेका सूत्र अवतीर्ण हुआ है
* अपूर्वकरणके प्रथम समयमें ही आयुकर्मके अतिरिक्त शेष कर्मोंका गुणश्रेणिनिक्षेप होता है जो अनिवृत्तिकरण के कालसे और अपूर्वकरणके कालसे विशेष अधिक
होता है।
१३५. वह जीव अपूर्वकरणके उसी प्रथम समयमें आयुकर्मके अतिरिक्त शेष कर्मोंका गुणश्रेणिनिक्षेप भी प्रारम्भ कर देता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
शंका-आयुकर्मका गुणश्रेणिनिक्षेप किसलिये नहीं करता है ?
समाधान-नहीं, इसका गुणश्रेणिनिक्षेप स्वभावसे ही नहीं करता है, क्योंकि आयुकर्ममें गुणश्रेणिनिक्षेपकी प्रवृत्ति असम्भव है।
परन्तु उस गुणश्रेणिनिक्षेपका प्रमाण कितना है ऐसी पृच्छा होनेपर वह अनिवृत्तिकरणके कालसे और अपूर्वकरणके कालसे विशेष अधिक है ऐसा निर्देश किया है। यहाँ अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणके समुदित कालका प्रमाण अन्तर्मुहूर्त है । उससे विशेष अधिक इस गुणश्रेणिनिक्षेपका आयाम है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान-अनिवृत्तिकरणके कालके संख्यातवें भागप्रमाण है। शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-ऊपर कहे जानेवाले अल्पबहुत्वविषयक सूत्रसे जाना जाता है।
१. ता० प्रती- च इति पाठः ।