Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 325
________________ २७४ ___ जयधवलासाहदे कसायपाहुडे [सम्मत्ताणियोगद्दारं १० उवरिमो विसेसाहियणिक्खेवो तं सव्वमंतरटुमागाएदि चि भणिदं होइ। किमेचियं चेव अंतरदीहत्तं ? ण, गुणसेढिसीसयादो उवरि अण्णाओ वि संखेज्जगुणाओ द्विदीओ घेत्त णंतरं करेदि । सुत्तेणाणुवइट्ठमेदं कथमवगम्मदे चे १ ण, पुरदो भणिस्समाणप्पाबहुअबलेण तदवगमादो । अथवा गुणसेढिअग्गग्गादो हेट्ठा संखेज्जदिभागं खंडेदि चि भणंतेण उवरि संखेज्जगुणाणं द्विदीणं खंडणं भणिदमेव । कुदो ? उवरि खंडिज्जमाणाणं द्विदीणं संखेज्जदिमागमेनं गुणसेढिअग्गग्गादो हेट्ठा खंदेदि चि सुत्तस्थसंबंधावलंबणादो । तदो अणियट्टिअद्धासेसस्स संखेज्जभागमेण कालेण अंतरं करेमाणो अंतरकरणद्धादो संखेज्जगुणं मिच्छत्तस्स पढमडिदिं परिसेसिय षुणो अणियट्टिकरणद्धादो उवरिमविसेसाहियगुणसेढिणिक्खेवेण सह तनो संखेज्जगुणाओ अण्णाओ वि ठिदीओ घेत्तणंतरमेसो करेदि चि सिद्धो सुत्तस्स समुदायत्थो। एत्थ अंतफालीओ पडिसमयमसंखेज्जगुणसरूवेण घेत्त ण पढमविदियहिदीसु समयाविरोहेण णिक्खिवमाणो अंतोमुहुरमेण कालेणंतरं समाणेदि चि वचव्वं। उस सबको अन्तरके लिए ग्रहण करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। शंका-क्या अन्तरकी दीर्घता इतनी ही है ? समाधान नहीं, क्योंकि गुणश्रेणिशीर्षसे ऊपर अन्य भी संख्यातगुणी स्थितियोंको ग्रहणकर अन्तर करता है। शंका-सूत्रमें निर्देश नहीं की गई यह विशेषता किस प्रमाणसे जानी जाती है ? समाधान नहीं, क्योंकि आगे कहे जानेवाले अल्पबहुत्वके बलसे इसका ज्ञान होता है। अथवा गुणश्रेणिके अग्राग्रसे नीचे संख्यातवें भागप्रमाण स्थिति निषेकोंका खण्डन करता है ऐसा कथन करनेवाले आचार्यदेवने ऊपर संख्यातगुणी स्थितियोंका खण्डन करता है यह कह ही दिया है, क्योंकि ऊपर खण्डित होनेवाली स्थितियोंके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितियोंका गुणश्रेणिके अग्राग्रसे नीचे खण्डन करता है इस प्रकार सूत्रका अर्थके साथ सम्बन्धका अवलम्बन लिया है। इसलिये अनिवृत्तिकरणका जितना काल शेष है उसके संख्यातव भागप्रमाण कालके द्वारा अन्तरको करता हआ अन्तरकरणके कालसे संख्यातगुणी मिथ्यात्वकी प्रथम स्थितिको शेष रखकर पुनः अनिवृत्तिकरणके कालसे उपरिम विशेष अधिक गुणश्रेणि-निक्षेपके साथ उससे संख्यातगुणी अन्य स्थितियोंको भी ग्रहण कर यह जीव अन्तर करता है इस प्रकार सूत्रका समुदाय रूप अर्थ सिद्ध हुआ। यहाँ पर अन्तर फालियोंको प्रत्येक समयमें असंख्यातगुणे रूपसे ग्रहण कर प्रथम और द्वितीय स्थितियोंमें आगमानुसार निक्षेप करता हुआ अन्तर्मुहूर्तप्रमाण कालके द्वारा अन्तरकरणको समाप्त करता है ऐसा कहना चाहिए। विशेषार्थ—यहाँ अन्तरकरणके करनेमें कितना काल लगता है, अन्तरके लिये ग्रहण की गई स्थितियोंका प्रमाण कितना है और अन्तरके पूर्वकी प्रथम स्थितिका प्रमाण कितना है इन तीन बातोंका मुख्यरूपसे निर्णय किया गया है। विवक्षित कर्मकी अधस्तन और उपरितन

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