Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 362
________________ गाथा १०१ ] दंसणमोहोवसामणा (४८) मिच्छत्तपच्चयो खलु बंधो उवसामगस्स बोद्धवो । उवसंते आसाणे तेण परं होइ भजियव्वो ॥ १०१ ॥ ३११ $ २०१. मिच्छत्तं पच्चओ कारणं जस्स सो मिच्छत्तपच्चओ खलु परिफुडं बंधो दंसणमोहोवसामगस्स जाव षढमट्ठिदिचरिमसमयो ति ताव बोद्धव्वो । केसिं कम्माणं बंधो ? मिच्छत्तस्स णाणावरणादिसेसकम्माणं च । जइ वि एत्थ सेसाणं असंजम - कसाय - जोगाणं पच्चयत्तमत्थि तो वि मिच्छत्तस्सेव षहाणभावविवक्खाए एवं परू विदमिदि घेत्तव्वं, उवरि मिच्छत्तपच्चयस्साभावपदुप्पायणपरत्तादो । 'उवसंते आसाणे' दंसणमोहणीए उवसंते अंतरं पविट्ठपढमसमयप्प हुडि मिच्छत्तपच्चयस्स आसाणमेव विणासो चेव, ण तत्थ मिच्छत्तपच्चओ अस्थि त्ति वृत्तं होइ । अधवा 'उवसंते' वसंतदंसणमोहणीये सम्माइट्ठिम्मि आसाणे' सासणसम्माइट्ठिम्मि यमिच्छत्तपच्चओ णत्थि विकसे काढूण सुत्तत्थो समत्थेयव्वो । 'तेण परं होइ भजियव्वो' तत्तो परमुवसंतद्धाए rिigate मिच्छत्तपच्चओ भजियव्वो । किं कारणं १ उवसमसम्मत्तद्धाए खीणाए तिन्ह दर्शन मोहनीयका उपशम करनेवाले जीवके नियमसे मिथ्यात्वनिमित्तक बन्ध जानना चाहिए । किन्तु उसके उपशान्त रहते हुए मिथ्यात्वनिमित्तक बन्ध नहीं होता तथा उपशान्त अवस्थाके समाप्त होनेके बाद मिथ्यात्वनिमित्तक बन्ध भजनीय है ॥ ७-१०१ ॥ २०१ मिथ्यात्व है प्रत्यय अर्थात् कारण जिसका बह मिथ्यात्वप्रत्यय बन्ध 'खलु' अर्थात् स्पष्टरूपसे दर्शनमोहका उपशम करनेवाले जीवके प्रथम स्थितिके अन्तिम समय तक जानना चाहिए । शंका- किन कर्मोंका बन्ध ? समाधान — मिथ्यात्व और ज्ञानावरणादि शेष कमका । यद्यपि यहाँपर ( मिध्यात्व गुणस्थान में ) शेष असंयम, कषाय और योगका प्रत्ययपना है तो भी मिध्यात्वकी ही प्रधानताकी विवक्षामें इस प्रकार कहा है ऐसा यहाँ पर ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि ऊपरके गुणस्थानों में मिथ्यात्वनिमित्तक बन्धके अभावका कथन परक यह वचन है । 'उवसंते आसाणे' दर्शनमोहनीयके उपशान्त होने पर अन्तरायाममें प्रवेश करनेके प्रथम समयसे लेकर मिध्यात्वनिमित्तक बन्धका आसान अर्थात् विनाश ही है । वहाँ मिथ्यात्व निमित्तक बन्ध नहीं है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अथवा 'उवसंते' दर्शन मोहनीय के उपशान्त होनेपर सम्यग्दृष्टि जीवके और 'आसाणे' अर्थात् सासादन सम्यग्दृष्टि जीवके 'मिथ्यात्वनिमित्तक बन्ध नहीं होता' इतना वाक्यशेषका योग करके सूत्रार्थक। समर्थन करना चाहिए । 'तेण परं होइ भजियव्वो' अर्थात् उसके बाद उपशम सम्यके काल के समाप्त होनेपर मिथ्यात्वनिमित्तिक बन्ध भजनीय क्योंकि उपशम सम्यक्त्वके १. ता० प्रती सम्माइट्ठिम्मि य मिच्छत्ते आसाणे इति पाठः ।

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