Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 338
________________ गाथा ९४] दसणमोहोवसामणा २८७ $ १७०. किं कारणं ? चरिमाणुभागकंडयुकीरणद्धादो विसेसाहियकमेण संखेजसहस्समेत्तीसु अणुभागखण्डयउक्कीरणद्धासु हेढा ओदिण्णासु एदस्स समुप्पत्तीदो। एत्थ विसेसपमाणं हेट्ठिमरासिस्स संखेजदिमागमेत्तं होद्ण संखेजावलियपमाणमिदि घेत्तव्वं।२। * चरिमट्ठिदिखंडयउक्कीरणकालो तम्हि चेव द्विविधकालो च दो वि तुल्ला संखेजगुणा। १७१. एवं भणिदे मिच्छत्तस्स पढमट्ठिदीए समप्पमाणाए तत्कालियचरिमडिदिखंडयउकीरणकालो तत्थतणचरिमट्ठिदिबंधकालो च गहेयव्वो । सेसकम्माणं पुण गुणसंकमकालचरिमद्विदिबंध-द्विदिखंडयकालाणं गहणं कायव्वं । एदे च दो वि सरिसपरिमाणा होदण पुम्विन्लादो अपुव्वकरणपढमसमयविसयाणुभागकंडयुक्कीरणद्धादो संखेजगुणा त्ति णिहिट्ठा । किं कारणं? एक्कम्मि डिदिखंडयकालभंतरे संखेजसहस्समेत्ताणि अणुभागखंडयाणि होति त्ति परमगुरूवएसादो । ३-४ । ___ * अंतरकरणद्धा तम्हि चेव हिदिवंधगद्धा च दो वि तुल्लाओ विसेसाहियाओ। १७२. किं कारणं ? पुग्विल्लदोकालेहितो हेट्ठा अंतोमुहुत्तकालमोसरियूण दोण्हमेदासिमद्धाणं पवुत्तिदंसणादो । ५-६ । ६ १७०. क्योंकि अन्तिम अनुभागकाण्डकके उत्कीरणकालसे विशेष अधिकके क्रमसे संख्यात हजार अनुभागकाण्डकसम्बन्धी उत्कीरणकालोंके नीचे उतरने पर इसकी उत्पत्ति होती है। यहाँपर विशेषका प्रमाण अधस्तन राशिका संख्यातवां भागमात्र होकर संख्यात आवलिप्रमाण है ऐसा ग्रहण करना चाहिए ।२।। * उससे अन्तिम स्थितिकाण्डकका उत्कीरणकाल और वहींपर स्थितिबन्धकाल ये दोनों ही परस्पर तुल्य होकर संख्यातगुणे हैं। $ १७१. ऐसा कहनेपर मिथ्यात्वकी प्रथम स्थितिके समाप्त होते समय उस कालमें होनेवाले अन्तिम स्थितिकाण्डकके उत्कीकरणकालको और वहाँके अंन्तिम स्थितिबन्धकालको ग्रहण करना चाहिए। तथा शेष कर्मोंके गुणसंक्रमकालके अन्तिम स्थितिबन्धकालको और स्थितिकाण्डककालको ग्रहण करना चाहिए। ये दोनों सदश परिमाणवाले होकर पर्वोक्त अपूर्वकरणके प्रथम समयसम्बन्धी अनुभागकाण्डकके उत्कीरणाकालसे संख्यातगुणे हैं ऐसा यहाँ निर्देश किया है, क्योंकि एक स्थितिकाण्डकके कालके भीतर संख्यात हजार अनुभाग काण्डक होते हैं ऐसा परम गुरुका उपदेश है । ३-४। * उन दोनोंसे अन्तरकरणका काल और वहीं पर स्थितिबन्धकाल ये दोनों ही परस्पर तुल्य होकर विशेष अधिक हैं। $ १७२. क्योंकि पूर्वोक्त दो कालोंसे नीचे अन्तर्मुहूर्त काल पीछे जाकर इन दोनों कालोंकी प्रवृत्ति देखी जाती है । ५-६ ।

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