Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 342
________________ गाथा ९४ ] दंसणमोहोवसामणा २९१ * गुणसेढिणिक्खेवो विसेसाहिओ । $ १८१. अपुब्वकरणपढमसमये आढत्तो जो गुणसेढिणिक्खेवो सो अपुव्वकरणद्वादो विसेसाहिओ ति भणिदं होइ । केत्तियमेतो विसेसो १ विसेसाहियअणिय डिअद्धामेचो । १५ । · * उवसंतद्धा संखेज्जगुणा । $ १८२. जम्मि काले मिच्छत्तमुवसंतभावेणच्छदि सो उवसमसम्मत्त कालो उवसंतद्धा ति भण्णदे | एसा गुणसेढिणिक्खेवादो संखेज्जगुणा । कुदो एदं णव्वदे ! दहादो चैव सुत्तादो । १६ * अंतरं संखेज्जगुणं । $ १८३. अंतरदीहत्तसुवसमसम्मत्तद्धादो संखेज्जगुणमिदि भणिदं होदि । किं कारणं १ अंतरस्स. संखेज्जदिभागे वेव उवसमसम्मतद्धं गालिय तदो तिन्हं कम्माण 1 * उससे गुणश्रेणिका निक्षेप विशेष अधिक है । $ १८१. क्योंकि अपूर्वकरणके प्रथम समय में जो गुणश्र णिनिक्षेप उपलब्ध होता है वह अपूर्वकरणके कालसे विशेष अधिक है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । शंका - विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान —अनिवृत्तिकरणके कालको विशेष अधिक करनेपर जो लब्ध आवे तत्प्रमाण है | १५ | विशेषार्थ — प्रारम्भ में गुणश्र णिनिक्षेपका काळ अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणके कालसे कुछ अधिक बतला आये हैं । इसीलिये यहाँपर विशेषको उक्तप्रमाण बतलाया है । * उससे उपशान्ताद्धा संख्यातगुणा है । $ १८२. जिस कालमें मिध्यात्व उपशांतरूपसे रहता है वह उपशमसम्यक्त्वा काल उपशान्ताद्धा कहलाता है । यह गुणश्रेणिनिक्षेपसे संख्यातगुणा है । शंका – यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान – इसी सूत्रसे जाना जाता है । १६ । - * उससे अन्तर संख्यातगुणा है । $ १८३. क्योंकि अन्तरका आयाम उपशमसम्यक्त्व के कालसे संख्यातगुणा ह यह उक्त कथनका तात्पर्य है । शंका- इसका क्या कारण है ? समाधान - क्योंकि अन्तरके संख्यातवें भागमें ही उपशमसम्यक्त्वके कालको गलाकर

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