Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 341
________________ २९० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [सम्मत्ताणियोगदारं १० समयमिच्छाइट्ठिणा बद्धमिच्छत्तणवकबंधस्स एगसमयो पढमद्विदीए चेव गलदि। पुणो इमं पढमद्विदिचरिमसमयं मोत्तूण उवसमसम्माइद्विकालब्भतरे समयूणदोआवलियमेतद्धाणमुवरिगंत्तूण तस्स उवसामणा समप्पइ, तेण कारणेण पढमट्टिदीए उवरिमाओ समयूणदोआवलियाओ पवेसियूण विसेसाहिया जादा ।१२। संपहि एदस्सेव विसेसाहियपमाणस्स णिण्णयकरणमुत्तरो सुत्तावयवो-- * वे आवलियाओ समयूणाओ । ६१७८. गयत्थमेदं सुत्तं ।। * अणियहिअद्धा संखेनगुणा । $ १७९. किं कारणं ? अणियट्टिअद्धाए संखेजदिमागे चेव पढमट्टिदीए सरूवोवलद्धीदो । १३ । * अपुवकरणद्धा संखेजगुणा। . 5 १८०. सबद्धमणियट्टिकरणद्धादो अपुव्वकरणद्धार तहाभावेणावट्ठाणदंसणादो । १४ । समाधान-क्योंकि अन्तिम समयवर्ती मिथ्यादृष्टिके द्वारा बाँधे गये मिथ्यात्वसम्बन्धी नवकबन्धका एक समय प्रथम स्थितिमें ही गल जाता है। पुनः इस प्रथम स्थितिसम्बन्धी अन्तिम समयको छोड़कर उपशमसम्यग्दृष्टिके कालके भीतर एक समय कम दो आवलिप्रमाण काल ऊपर जाकर उसकी उपशामना समाप्त होती है, इसलिए प्रथम स्थितिमें एक समय कम दो आवलिका प्रवेश कराकर वह विशेष अधिक हो जाता है । १२ । अब इसी विशेष-अधिक प्रमाणका निर्णय करनेके लिये आगेका सूत्रवचन है* वह विशेष एक समय कम दो आवलिप्रमाण है। 5 १७८. यह सूत्र गतार्थ है। * उससे अनिवृत्तिकरणका काल संख्यातगुणा है। $ १७९. क्योंकि अनिवृत्तिकरणके कालके संख्यातवें भागमें ही प्रथम स्थितिके स्वरूपकी उपलब्धि होती है । १३ । विशेषार्थ-अनिवृत्तिकरणमें अन्तरकरणके प्रथम समयसे लेकर अनिवृत्तिकरणके अन्तिम समय तकका जितना काल है वही मिथ्यात्वकी प्रथम स्थितिका काल है जो कि अनिवृत्तिकरणके कालके संख्यातवें भागप्रमाण है। यही कारण है कि यहाँ टीकामें यह निर्देश किया है कि अनिवृत्तिकरणके कालके संख्यात भागमें ही प्रथम स्थितिकी उपलब्धि होती है। * उससे अपूर्वकरणका काल संख्यातगुणा है । $ १८०. क्योंकि सर्वदा अनिवृत्तिकरणके कालसे अपूर्वकरणके कालका उसी प्रकारसे अवस्थान देखा जाता है । १४ ।

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