Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 337
________________ २८६ जयधवलासहिदे कसायपाहुदे [ सम्मन्ताणियोगद्दारं १० $ १६७. एवमेत्तिएण संबंघेण दंसणमोहउवसामणाए परूवणं काढूण संपहि एत्थेव कालसंबंधियाणं पदाणं अप्पाबहुअपरूवणट्ठमुवरिमं पबंधमाह * एदिस्से परूवणाए गिट्ठिदाए इमो दंडओ पणुवीसपडिगो । $ १६८. एदिस्से अणंतरपरूविदाएं दंसणमोहोवसामगपरूवणाए समत्ताए संपहि एतो 'दंसण-चरितमोहे' त्ति पदपडिपूरणं बीजपदमवलंबिय इमो पणुवीसपडिओ अप्पा बहुअदंडओ कादव्वो होइ। एदेण विणा जहण्णुक्कस्सट्ठिदि-अणुभागखंडणुकीरणद्धादिपदाणं पमाणविसयणिण्णयाणुप्पत्तीदो त्ति भणिदं होइ । एवमेदेण सुत्तेण कयावसरस्स पणुवीसपदियरंस अप्पा बहुअदंडयस्स जहाकममेसो णिद्देसो– * सव्वत्थोवा उवसामगस्स जं चरिमअणुभागखंडयं तस्स उक्कीरणद्धा । $ १६९. एत्थ उवसामगो त्ति वृत्ते दंसणमोहउवसामगो घेत्तव्वो । तस्स चरिमाणुभागखंडयमिदि वृत्ते मिच्छत्तस्स पढमट्ठिदीए समप्पंतीए तत्थतणचरिमंतोनुहुत्तकालभावियस्स अणुभागखंडयस्स गहणं कायव्वं । सेसकम्माणं पुण गुणसंकमकालचरिमावत्थाभाविणो अणुभागखंडयस्स गहणं कायव्वं, तदुक्कीरणद्धा अंतोमुहुत्तमेत्ती होण सव्वत्थोवा ति णिहिट्ठा | १ | पढमस्स अणुभागखंडयस्स उक्कीरणकालो * अपुव्वकरणस्स विसेसाहिओ । $ १६७, इसप्रकार इतने प्रबन्धके द्वारा दर्शनमोहनीयकी उपशामनाका कथनकर अब यहीं पर कालसम्बन्धी पदोंके अल्पबहुत्वका कथन करनेके लिये आगेके प्रबन्धको कहते हैं— * इस प्ररूपणा के समाप्त होनेपर यह पच्चीसपदिक दण्डक करने योग्य है । $ १६८. अनन्तरपूर्व कही गई दर्शनमोहके उपशामककी इस प्ररूपणाके समाप्त होनेपर अब 'दंसण-चरित्तमोहे' इस पदकी पूर्तिस्वरूप बीजपदका अवलम्बन लेकर यह पच्चीसपदिक अल्पबहुत्वदंडक करने योग्य है, क्योंकि इसके विना जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति और अनुभागसम्बन्धी उत्कीरणकाल आदि पदोंके प्रमाणका निर्णय नहीं हो सकता यह उक्त कथनका तात्पर्य है । इसप्रकार इस सूत्रद्वारा अवसर प्राप्त पच्चीसपदिक अल्पबहुत्वदण्डकका क्रमसे यह निर्देश है * उपशामकका जो अन्तिम अनुभागकाण्डक है उसका उत्कीरणकाल सबसे तो है । $ १६९. यहाँ सूत्रमें 'उपशामक' ऐसा कहनेपर दर्शनमोहके उपशामकको ग्रहण करना चाहिए । 'उसके अन्तिम अनुभागकाण्डक' ऐसा कहनेपर मिध्यात्वकी प्रथम स्थिति के समाप्त होते समय वहाँ अन्तिम अन्तर्मुहूर्त में होनेवाले अनुभागकाण्डकका ग्रहण करना चाहिए। परन्तु • शेष कर्मोंका गुणसंक्रम कालको अन्तिम अवस्थामें होनेवाले अनुभागकाण्डकका ग्रहण करना चाहिए, उनका उत्कीरण काल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होकर सबसे स्तोक है ऐसा निर्देश किया है | १| . * उससे अपूर्वकरण के प्रथम अनुभागकाण्डकका उत्कीरणकाल विशेष अधिक है।

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