Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 326
________________ • गाथा ९४ ] दंसणमोहोवसामणा २७५ * तदो अंतरं कीरमाणं कदं । $ १५० अंतरकरणपारंभसमकालभाविद्विदिबंध गद्धामेत्रेण कालेण समयं पडि अंतरद्विदीओ फालिसरूवेणुक्कीरंतेण कमेण कीरमाणमंतरमतरकरणद्धाचरिमसमये अंतरचरिमफालीए पादिदाए कदं णिट्ठिदमिदि वृत्तं होइ । एदं च मिच्छत्तस्सेव अंतरकरणं, दंसणमोहोवसामणाए अण्णेसिं कम्माणमंतरकरणाभावादो । णवरि सम्मत - सम्मामिच्छतसंतकम्मिओ जदि उवसमसम्मतं पडिवज्जइ तो तेसिं पि अंतरकरणमे देणेव विहाणेण करेदि । णवरि तेसिमावलियबाहिरमुवरि मिच्छतंतरेण सरिसमंतरं करेदि गि घेराव्वं । स्थितियोंको छोड़कर मध्यकी अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थितियोंके निषेकोंका परिणाम विशेषके द्वारा अभाव करनेको अन्तरकरण कहते हैं। अनादि मिध्यादृष्टि जीव अनिवृत्तिकरण के कालके बहुभाग व्यतीत होने पर जो एक भाग प्रमाणकाल शेष रहता है उसके एक स्थितिबन्धके योग्य संख्यातवें भागप्रमाण कालमें मिथ्यात्वके निषेकोंका अन्तरकरण करता है। इससे अन्तरकरण करने में कितना काल लगता है इसका ज्ञान हो जाता है। यह जीव जिस समय अन्तरकरणका प्रारम्भ करता है उस समय से लेकर अनिवृत्तिकरणका जितना काल शेष रहता है तत्काल प्रमाण मिथ्यात्वकी अधस्तन स्थितियोंकी प्रथम स्थिति होती है, क्योंकि अनिवृत्तिकरणके इतने कालके मिथ्यात्वरूपसे व्यतीत होने पर यह जीव अन्तरमें प्रवेश कर नियमसे सम्यग्दृष्टि हो जाता है । अब अन्तरके लिये कितनी स्थितियोंको ग्रहण करता है इसका विचार करते हैं । गुणश्रेणिशीर्षके अग्रभागसे नीचे गुणश्रेणिशीर्षके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितियोंका और उससे ऊपर संख्यातगुणी स्थितियोंका यह जीव अन्तर करता है । इस अन्तर के ऊपर मिथ्यात्व की जो स्थिति शेष रहती है वह सब उपरितन स्थिति कहलाती है । यहाँ मिथ्यात्वकी जिन स्थितियोंके निषेकों का अन्तर करता है उनका फालिक्रमसे उत्कीरणकर अन्तर्मुहूर्त कालमें प्रथम और आबाधाकाल से हीन द्वितीय स्थिति में निक्षेपण करता है । निक्षेपणकी पूरी विधि आगमसे जान लेनी चाहिए यह उक्त सूत्र और उसकी टीकाका आशय है । * इस प्रकार इस विधिसे किया जानेवाला अन्तरका कार्य किया । $ १५०. अन्तरकरणके प्रारम्भके समकालभावी स्थितिबन्धके कालप्रमाण काल द्वारा प्रत्येक समय में अन्तरसम्बन्धी स्थितियोंका फालिरूपसे उत्कीरण करनेवाले जीवने क्रमसे किया जानेवाला अन्तर अन्तरकरणके कालके अन्तिम समयमें अन्तरसम्बन्धी अन्तिम फालिका पात करने पर किया अर्थात् सम्पन्न किया यह उक्त कथनका तात्पर्य है । और यह मिथ्यात्व कर्मका ही अन्तरकरण है. क्योंकि दर्शनमोहनीयको उपशामनामें अन्य कर्मोंके अन्तरकरणका अभाव है । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व का सत्कर्म वाला जीव यदि उपशम सम्यक्त्वको प्राप्त होता है तो उन कर्मोंका भी अन्तरकरण इसी विधिसे करता है । इतनी विशेषता है उनका नीचेकी एक आवलिप्रमाण ( उदयावलिप्रमाण ) स्थितियोंके सिवाय स्थितिसे लेकर ऊपर मिथ्यात्वके अन्तर के सदृश अन्तर करता है ऐसा ग्रहण करना चाहिए । विशेषार्थ – अनादि मिथ्यादृष्टि जीव प्रथमोपशमको उत्पन्न करते समय अनिवृत्तिकरण

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