Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 333
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ सम्मत्ताणियोगद्दा १० * पढमसमयउवसंतदंसणमोहणीओ मिच्छत्तादो सम्मामिच्छत्त े बहुगं पदेसग्गं देदि । समत्त े असंखेजगुणहीणं देदि । २८२ $ १६२. पढमसमयउ वसंतदंसणमोहणीयो णाम पढमसमयउवसमसम्माइट्ठी । सो मिच्छत्तादो सम्मामिच्छत्ते बहुअं पदेसग्गं देदि । सम्मत्ते पुण तत्तो असंखेजगुणही पदेसग्गं देदि । दोहमेदेसिं दव्वाणमागमणडुं मिच्छत्तस्स को पडिभागो ? पलिदोवमस्स असंखेज दिभागपमाणो गुणसंकमभागहारो । णवरि सम्मामिच्छत्तपदेस - गणणि मित्तगुण संकम भागहारादो सम्मत्तपदेसागमण णिबंधण गुण संकम भागहारो असंखेजगुणोति वेत्तव्वो । एवमेदेणप्पा बहुअविहिणा अंतोमुहुत्तमेत्तकालं मिच्छत्तादो सम्मतसम्मामिच्छत्ताणि पूरदि । णवरि समये ० असंखेज्जगुण मसंखेज्जगुणं मिच्छत्तादो पदेसग्गं कामेमाणो पढमसमए सम्मामिच्छत्तम्मि संकतदव्वादो विदियसमये सम्मत्तम्मि असंखेजगुणं दव्वं संका मेदि । तत्थेव सम्मामिच्छत्ते असंखेज्जगुणं पदेसग्गं संकामेदि । एवं जाव गुण संकमचरिमसमयो ति । संपहि एवंविहस्स अत्थविसेसस्स जाणावणट्ठमुत्तरसुराप्पबंधमाह - * प्रथम समयवर्ती उपशान्त-दर्शनमोहनीय जीव मिथ्यात्वके द्रव्यमेंसे सम्यग्मिथ्यात्वमें बहुत प्रदेशपुंजको देता है। उससे सम्यक्त्वमें असंख्यातगुणे हीन प्रदेशपुञ्जको देता है । $ १६२. प्रथम समयवर्ती उपशान्त-दर्शनमोहनीय जीव प्रथम समयवर्ती उपशमसम्यदृष्टि कहलाता है । वह मिथ्यात्वके द्रव्यमेंसे सम्यग्मिथ्यात्वमें बहुत प्रदेश पुञ्जको देता है । परन्तु सम्यक्त्वमें उससे असंख्यातगुणे हीन प्रदेशपुञ्जको देता है । शंका- इन दोनोंके द्रव्योंके आनेके लिये मिथ्यात्वका क्या प्रतिभाग है ? समाधान -- गुणसंक्रम भागहार प्रतिभाग है, जो पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इतनी विशेषता है कि सम्यग्मिथ्यात्वके प्रदेशोंके आनेके निमित्तरूप गुणसंक्रम भागहारसे सम्यक्त्वके प्रदेशोंके आनेका निमित्तरूप गुणसंक्रम भागहार असंख्यातगुणा है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए । इस प्रकार इस अल्पबहुत्वविधिसे अन्तर्मुहूर्त कालतक मिध्यात्वके द्रव्यमेंसे सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वको पूरित करता है । इतनी विशेषता है कि प्रत्येक समय में मिध्यात्वके द्रव्यमें से असंख्यातगुणे असंख्यातगुणे प्रदेश पुञ्जका संक्रम करता हुआ प्रथम समयमें सम्यग्मिध्यात्वमें संक्रान्त हुए द्रव्यसे दूसरे समय में सम्यक्त्वमें असंख्यातगुणे द्रव्यका संक्रम करता है । तथा उसी समय में सम्यग्मिथ्यात्व में असंख्यातगुणे प्रदेशपुंजका संक्रम करता है । इसप्रकार क्रम अन्तिम समयतक जानना चाहिए। अब इसप्रकार के अर्थविशेषका ज्ञान करानेके लिये आगे सूत्रप्रबन्धको कहते हैं

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