Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गाथा ९४ ]
दसणमोहोवसामणां * विदियसमए सम्मत्त असंखेज्जगुणं देदि । * सम्मामिच्छत्त असंखेज्जगुणं देदि । * तदियसमए सम्मत्त असंखेज्जगुणं देदि । * सम्मामिच्छत्त असंखेज्जगुणं देदि । * एवमंतोमुहुत्तद्धं गुणसंकमो णाम ।
5 १६३. एदाणि सुगाणि सुगमाणि । एदेहिं सुरोहिं परत्थाणप्पाबहुअं भणिदं । संपहि सत्थाणप्पाबहुए भण्णमाणे पढमसमए सम्मामिच्छचे संकमिदपदेसग्गं थोवं । विदियसमए असंखेज्जगुणं । एवं जाव गुणसंकमचरिमसमओ त्ति । एवं सम्मनस्स वि सत्थाणप्पाबहुअं णेदव्वं । एत्थ उवसमसमाहट्ठिविदियसमयप्पहुडि जाव मिच्छचस्स गुणसंकमो अस्थि ताव सम्मामिच्छतस्स वि गुणसंकमो भवदि, अंगुलस्सासंखेज्जमागपडिभागियविज्झादगुणसंकमेण सम्मामिच्छन्दव्वस्स सम्मचे तदवत्थाए संकमणोवलंभादो। सुरेणाणुवइट्ठमेदं कुदो लब्भदि त्ति णासंकणिज्जं; सुरास्सेदस्स देसामासयभावेण तहाविहत्थविसेससंसूचणे वावारब्भुवगमादो ।
* उससे दूसरे समयमें सम्यक्त्वमें असंख्यातगुणे प्रदेशपुञ्जको देता है । * उससे सम्यग्मिथ्यात्वमें असंख्यातगुणे प्रदेशपुंजको देता है । * उससे तीसरे समयमें सम्यक्त्वमें असंख्यतागुणे प्रदेशपुञ्जको देता है। * उससे सम्यग्मिय्यात्वमें असंख्यातगुणे प्रदेशपुञ्जको देता है। * इस प्रकार अन्तर्मुहूर्त कालतक गुणसंक्रम होता है ।
$ १६३ ये सूत्र सुगम हैं। इन सूत्रोंद्वारा परस्थान अल्पबहुत्वका कथन किया। अब स्वस्थान अल्पबहुत्वका कथन करनेपर प्रथम समयमें सम्यग्मिथ्यात्वमें संक्रमित हुआ प्रदेशपुंज स्तोक है। दूसरे समयमें संक्रमित हुआ प्रदेशपुंज असंख्यातगुणा है। इसप्रकार गुणसक्रमके अन्तिम समयतक जानना चाहिए। इसीप्रकार सम्यक्त्वका भी स्वस्थान अल्पबहुत्व ले जाना चाहिए। यहाँपर उपशमसम्यग्दृष्टिके दूसरे समयसे लेकर जहाँतक मिथ्यात्वका गुणसंक्रम होता है वहाँतक सम्यग्मिथ्यात्वका भी गुणसंक्रम होता है, क्योंकि सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागके प्रतिभागीरूप विध्यातगुणसंक्रमद्वारा सम्यग्मिथ्यात्वके द्रव्यका सम्यक्त्वमें उस अवस्थामें संक्रमण उपलब्ध होता है।
शंका--सूत्रमें इसका उपदेश नहीं दिया, फिर यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इस सूत्रका देशामर्षकरूपसे उस प्रकारको अवस्थाविशेषके सूचन करनेमें व्यापार स्वीकार किया गया है।
विशेषार्थ--यहाँ उपशमसम्यग्दृष्टिके प्रथम समयसे लेकर अन्तर्मुहूर्त काल तक मिथ्यात्वके द्रव्यका सम्यग्भिथ्यात्व और सम्यक्त्वमें गुणसंक्रम भागहारद्वारा किस प्रकार