Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 323
________________ २७२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [सम्मत्ताणियोगदारं १० १४६. एवमेदीए परूवणाए बहूहि द्विदिखंडयसदस्सेहिं गदेहिं तदो कीरमाणकज्जविसेसपदुप्पायणद्वमुत्तरसुत्त माह-- .. * एवं हिदिखंडयसहस्सेहिं अणियटिअद्धाए संखेज्जेसु भागेसु गदेसु अंतरं करेदि। $ १४७. एवमणंतरपरूविदविहाणेण बहूहिं द्विदिखंडयसहस्सेहिं पादेक्कमणुभागखण्डयसहस्साविणाभावीहि अणियट्टिअद्धाए संखेज्जे भागे गमिय तदद्धाए संखेज्जभागमेत्तावसेसे अंतरकरणमाढवेदि चि भणिदं होइ। किमंतरकरणं णाम ? विवक्खियकम्माणं हेट्ठिमोवरिमद्विदीओ मोत्तूण मज्झे अंतोमुहुरमेचीणं द्विदीणं परिणामविसेसेण णिसेगाणमभावीकरणमंतरकरण मिदि भण्णदे। संपहि एवं लक्षणमंतरकरणमाढविय पुणो केचियमेण कालेण केशियाओ द्विदीओ घेच णंतरं करेदि, केचियमेचि वा मिच्छतस्स पढमहिदि परिसेसेदि चि एवंविहस्स अत्थविसेसस्स परूवणट्ठमुचरसुत्तमोइण्णं स्पष्टरूपसे बतलाया गया है। विशेष बात इतनी ही है कि दर्शनमोहनीयकी उपशमना करनेवाले जीवके अवस्थित गुणश्रेणिरचना न होकर गलितावशेष गुणणि रचना होती है। इसलिए अनिवृत्तिकरणके प्रथम समयसे लेकर आगे भी गुणश्रेणिविन्यासके अन्तिम समय तक जो गुणश्रेणिका आयाम शेष रहता जाता है मात्र उतने प्रमाणमें ही प्रति समय असंख्यात गुणित प्रदेश विन्यासरूपसे उसकी रचना होती रहती है। $ १४६. इसप्रकार इस प्ररूपणाके अनुसार बहुत हजार स्थितिकाण्डकोंके हो जानेपर उसके आगे किये जानेवाले कार्यविशेषका कथन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं इस प्रकार हजारों स्थितिकाण्डकोंके द्वारा अनिवृत्तिकरणके कालके संख्यात बहुभागके व्यतीत होनेपर अन्तर करता है । $ १४७. इसप्रकार अनन्तरपूर्व कही गई विधिके अनुसार जो प्रत्येक स्थितिकाण्डक हजारों अनुभागकाण्डकोंका अविनाभावी है ऐसे बहुत हजार स्थितिकाण्डकोंके द्वारा अनिवृत्तिकरणके कालके संख्यात बहुभागको विताकर उसके कालके संख्यातवें भागप्रमाण शेष रहनेपर अन्तरकरणका आरम्भ करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। शंका-अन्तरकरण किसे कहते हैं ? समाधान-विवक्षित कर्मोकी अधस्तन और उपरिम स्थितियोंको छोड़कर मध्यकी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण स्थितियोंके निषेकोंका परिणामविशेषके कारण अभाव करनेको अन्तरकरण कहते हैं। ___ अब इसप्रकारके लक्षणवाले अन्तरकरणका आरम्भकर पुनः कितने कालके द्वारा कितनी स्थितियोंको ग्रहणकर अन्तर करता है तथा मिथ्यात्वकी प्रथम स्थितिको कितना शेष रहने देता है इसप्रकार इस अर्थविशेषका कथन करनेके लिये आगेका सूत्र आया है

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