Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 298
________________ गाथा ९४ ] दंसणमोहोवसामणा 1 $ ९९. एत्थ 'जन्हि जहण्णिया विसोही णिट्टिदा' त्ति वयणेण पढमणिव्वग्गणकंडयचरिमसमयस्स परामरिसो कओ । तमवहियं काढूण जहण्णविसोहिद्वाणाणमणंतगुणवड्डिकमेण पुव्वं परुविदत्तादो । उदो उवरिमसमए चित्ते विदियणिव्वग्गणकंडयपढमसमयो घेत्तव्वो । एत्थतणजहण्ण विसोही पढमसमयउक्कस्स विसोहीदो अनंतगुणा हो । किं कारणं ? पढमसमयउक्कस्सविसोही नाम विदियसमयदुचरिमखंडचरिमपरिणामेण समाणा होदूण उव्वंकभावेणावट्ठिदा । एसा वुण जहणणविसोही तत्थतणचरिमखंडजहण्णपरिणामेण अहंकसरूवेण समाणा । तेणाणंतगुणा जादा । २४७ * विदियसमए उक्कस्सिया विसोही अनंतगुणा । $ १००. किं कारणं ? पुव्विल्लजहण्णविसोही णाम विदियसमयचरिमखंडस्स जहण्णपरिणामो । एसो वुण तत्तो असंखेजलोगमेत्तछट्टाणाणि समुल्लंघियूण दिविदियसमयचरिमखंडउक्कस्सविसोहि ति । तेण कारणेणाणंतगुणा जादा । ९९. यहाँ अर्थात् उक्त सूत्र में 'जम्हि जहणिया विसोही णिट्ठिदा' इस वचनसे प्रथम निर्वर्गणाकाण्डकके अन्तिम समयका परामर्श किया गया है। इसे मर्यादा करके जघन्य विशुद्धिस्थानोंका अनन्तगुणी वृद्धिके क्रमसे पहले ही कथन कर आये हैं । उससे उपरि समय ऐसा कहने पर दूसरे निर्वर्गणाकाण्डकका प्रथम समय लेना चाहिए । यहाँकी 'जघन्य विशुद्धि प्रथम समयकी उत्कृष्ट विशुद्धिसे अनन्तगुणी होती है, क्योंकि प्रथम समयकी उत्कृष्ट विशुद्ध द्वितीय समय के द्विचरम खण्डके अन्तिम परिणामके सदृश होकर ऊर्वक पने से अवस्थित है और यह जघन्य विशुद्धि वहीं ( दूसरे समय ) के अन्तिम खण्डके अष्टांकस्वरूप जघन्य परिणामरूपसे अवस्थित है । इसलिए अनन्तगुणी हो गई है। विशेषार्थ - द्वितीय निर्वर्गणाकाण्डकके प्रथम समयकी जो जघन्य विशुद्धि है उसके समान ही अधःप्रवृत्तकरणके द्वितीय समय के अन्तिम खण्डकी जघन्य विशुद्धि है जो अधःप्रवृत्तिकरण के प्रथम समयके अन्तिम खण्डकी उत्कृष्ट विशुद्धिसे अनन्तगुणी है । इसका कारण यह है कि अधः प्रवृत्तकरणके प्रथम समय के अन्तिम खण्डकी यह उत्कृष्ट विशुद्धि द्वितीय समय के उपान्त्य खण्डके अन्तिम परिणामके सदृश ऊर्वकप्रमाण है और इससे उसी समयके अन्तिम खण्डकी जघन्य विशुद्धि अष्टांकस्वरूप होनेसे अनन्तगुणी है । * उससे दूसरे समय में उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणी है । $ १००. क्योंकि पूर्वको जघन्य विशुद्धि दूसरे समय के अन्तिम खण्डके जघन्य परिणामस्वरूप है, परन्तु यह उससे असंख्यात लोकप्रमाण षट्स्थानोंको उल्लंघन कर स्थित हुए दूसरे समय के अन्तिम खण्डकी उत्कृष्ट विशुद्धि है, इसलिये यह उससे अनन्तगुणी हो जाती है । विशेषार्थ – यहाँ पर दूसरे समय से अधःप्रवृत्तकरणका दूसरा समय लिया गया है । इसके अन्तिम खण्डकी जो जघन्य विशुद्धि है उतनी ही द्वितीय निर्वर्गणाकाण्ड प्रथम समयकी जघन्य विशुद्धि है ये दोनों विशुद्धियाँ परस्पर समान हैं, अतः उससे चूर्णिसूत्र में अधःप्रवृत्तकरण के दूसरे समयके अन्तिम खण्डकी उत्कृष्ट विशुद्धिको जो अनन्तगुणा बतलाया है वह युक्तियुक्त ही है, क्योंकि पूर्वकी जघन्य विशुद्धि उसी खण्डके प्रथम परिणामस्वरूप

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