Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 301
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ सम्मत्ताणियोगहारं १० $ १०४. एत्थ 'जम्हि उद्देसे उक्कस्सिया विसोही गिट्टिदा' ति णिद्देसेणेदेण दुचरिमणिव्वग्गणकंडयचरिमसमयो परामरसिओ, तत्थतणुक्कस्सविसोहीदो उवरि अधापवत्तचरिमसमय जहण्णविसोहीए अनंतगुणभावेण पुव्वं परुविदत्तादो । 'तदो उवरिमसमये' त्ति वृत्ते चरिमणिव्वग्गणकंडयपढमसमयस्स गहणं कायव्वं, तत्थतणुक्कस्सविसोही पुव्विल्लजइण्णविसोहिट्ठाणादो अनंतगुणा त्ति वृत्तं होइ । एत्थ कारणं सुगमं । * एवमुक्कस्सिया विसोही ऐदव्वा जाव अधापवत्तकरणचरिमसमयो त्ति । २५० ६ १०५. एवमुक्कस्सिया चैव विसोही अनंतराणं पेक्खियूणानंतगुणा णेयंव्वा । केदूरमिदि वृत्ते जाव अधापवत्तकरणचरिमसमयो त्ति पयदप्पा बहुअपरूवणाए मजादासो को । सेसं सुगमं । $ १०४. यहाँ 'जिस स्थान पर उत्कृष्ट विशुद्धि समाप्त हुई है' इस प्रकार इस निर्देशसे द्विरम निर्वर्गणाकाण्डकके अन्तिम समयका परामर्श किया गया है। उस स्थानकी उत्कृष्ट • विशुद्धिसे ऊपर अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयकी जघन्य विशुद्धिका अनन्तगुणेरूपसे पहले कथन कर आये हैं। 'उससे ऊपरके समय में' ऐसा कहने पर अन्तिम निर्वर्गणाकाण्डक प्रथम समयका प्रहण करना चाहिए। उस स्थानकी उत्कृष्ट विशुद्धि पूर्वके जघन्य विशुद्धि - स्थानसे अनन्तगुणी होती है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । यहाँ पर कारणका कथन सुगम है । विशेषार्थ – पहले द्विरम निर्वर्गणाकाण्डकके अन्तिम समयकी उत्कृष्ट विशुद्धिसे अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयकी जो जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणी बतला आये हैं उससे अन्तिम निर्वर्गणाकाण्डकके प्रथम समयकी उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणी होती है यह इस सूत्रका भाव है । कारण यह है कि यह जघन्य विशुद्धिसे षट्स्थान पतित असंख्यात लोकप्रमाण परिणामोंकी वृद्धि होने पर प्राप्त होती है । * इस प्रकार उत्कृष्ट विशुद्धिका यह क्रम अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समय तक ले जाना चाहिए । . $ १०५. इस प्रकार समनन्तर पूर्व समयोंको देखते हुए उत्कृष्ट विशुद्धि ही अनन्तगुणी लेजानी चाहिए। कितनी दूर तक ले जानी चाहिए ऐसा कहने पर 'अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समय तक' इस प्रकार प्रकृत अल्पबहुत्वप्ररूपणाकी मर्यादाका निर्देश किया है। शेष कथन सुगम है । विशेषार्थ – यहाँ पूर्व में निर्दिष्ट की गई कल्पित अंक संदृष्टिको ध्यान में रखकर अनेक जीवोंके आश्रयसे विशुद्धिसम्बन्धी उक्त अल्पबहुत्वको स्पष्ट करते हैं। समझो एक जीव है जो अधःप्रवृत्तकरण के प्रथम समय में विशुद्धिवश १ संख्याक परिणामको प्राप्त हुआ उसकी विशुद्धि सबसे जघन्य होगी। अब एक ऐसा दूसरा जीव है जो दूसरे समयमें ४० संख्याक जघन्य परिणामको प्राप्त हुआ। उसकी विशुद्धि पूर्वकी विशुद्धिसे अनन्तगुणी होगी । अब एक ऐसा तीसरा जीव है जो ८० संख्याक जघन्य परिणामको तीसरे समय में प्राप्त हुआ । १. ता० प्रती जिसे इति पाठः ।

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