Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 300
________________ . २४९ गाथा ९४ ] दसणमोहोवसामणा जहण्णविसोही अणंतगुणा । तत्तो पढमणिव्वगणकंडयचउत्थसमए उक्कसविसोही अणंतगुणा। एवं जाणिऊण णेदव्यं जाव विदियणिव्वग्गणकंडयचरिमसमए जहण्णविसोही अणंतगुणा जादा ति । एवमणंतरोवरिमणिव्वग्गणकंडयजहण्णपरिणामाणमणंतरहेट्ठिमणिव्वग्गणकंडयुक्कस्सपरिणामेहिं जहाकममणुसंधाणं कादूण णेदव्वं जाव अधापवत्तकरणचरिमसमए जहणिया विसोही दुचरिमणिव्वग्गणकंडयचरिमसमयुक्कस्सविसोहीदो अणंतगुणा होदूण जहण्णविसोहीणं पज्जवसाणं पत्ता त्ति ।। १०३. संपहि एत्तो उवरि चरिमणिव्वग्गणकंडयमेत्ताणमुक्कस्सपरिणामाणं चेव अप्पाबहुअं णेदव्वमिदि पदुप्पायणमुत्तरं पबंधमाह * तदो अंतोमुहुत्तमोसरियूण जम्हि उक्कस्सिया विसोही णिहिता तत्तो उवरिमसमए उकस्सिया विसोही अणंतगुणा।। विशुद्धि अनन्तगुणी है। इस प्रकार जानकर दूसरे निर्वर्गणाकाण्डकके अन्तिम समयकी जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणी है इसके प्राप्त होने तक अल्पबहुत्व करते जाना चाहिए। इस प्रकार अनन्तर उपरिम निर्वर्गणाकाण्डकके जघन्य परिणामोंका अनन्तर अधस्तन निर्वर्गणाकाण्डकके उत्कृष्ट परिणामोंके साथ क्रमसे अनुसन्धान करते हुए अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयकी जघन्य विशुद्धि द्विचरम निर्वर्गणाकाण्डक्के अन्तिम समयकी उत्कष्ट विशुद्धिसे अनन्तगुणी होकर जघन्य विशुद्धियोंके अन्तको प्राप्त होती है इस स्थानके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए। विशेषार्थ-पहले द्वितीय निर्वर्गणाकाण्डकके प्रथम समयकी जघन्य विशुद्धिसे प्रथम निर्वर्गणाकाण्डकके द्वितीय समयको उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणी है यह बतला आये हैं। यहाँ इससे आगे अल्पबहुत्वका क्या क्रम है यह सूचित करते हुए बतलाया है कि प्रथम निर्वर्गणाकाण्डकके द्वितीय समयको उत्कृष्ट विशुद्धिसे द्वितीय निर्वर्गणाकाण्डकके द्वितीय समयकी जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणी है, क्योंकि प्रथम निर्वर्गणाकाण्डकके द्वितीय समयकी उत्कृष्ट विशुद्धि ऊर्वकस्वरूप है और द्वितीय निर्वर्गणाकाण्डकके द्वितीय समयकी जघन्य विशुद्धि अष्टांकस्वरूप है। इसलिए यह उससे अनन्तगुणी है। तथा इससे आगे अर्थात् द्वितीय निर्वर्गणाकाण्डकके द्वितीय समयकी जघन्य विशुद्धिसे प्रथम निर्वर्गणाकाण्डकके तीसरे समयकी उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणी है, क्योंकि यह उत्कृष्ट विशुद्धि पूर्वको जधन्य विशुद्धिसे षट्स्थानपतितक्रमसे असंख्यात लोकप्रमाण वृद्धिके हो जानेपर प्राप्त होती है । इस प्रकार ऊपरके तथा नीचेके निर्वर्गणाकाण्डकोंके आश्रयसे जघन्य और उत्कृष्ट विशुद्धिके अल्पबहुत्वका विचार अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयकी जघन्य विशुद्धिके प्राप्त होने तक इसी क्रमसे करना चाहिए। यह जघन्य विशुद्धि उपान्त्य निर्वर्गणाकाण्डकके अन्तिम समयकी उत्कृष्ट विशुद्धिसे अनन्तगुणी है। १०३. अब इससे ऊपर अन्तिम निर्वर्गणाकाण्डकप्रमाण उत्कृष्ट परिणामोंका ही अल्पबहुत्व करते हुए ले जाना चाहिए इस बातका कथन करनेके लिये आगेके प्रबन्धको कहते हैं . * पुनः अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयसे अन्तर्मुहूर्त नीचे आकर जहाँ उत्कृष्ट विशुद्धि समाप्त हुई है उससे उपरिम समयमें उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणी होती है । ३२

Loading...

Page Navigation
1 ... 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404