Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 293
________________ २४२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [सम्मत्ताणियोगहारं १० दो वि सरिसाणि । एवं विदियसमयपरिणामखंडाणं तदियसमयपरिणामखंडाणं च सण्णियासो कायव्यो। एवमुवरि वि अणंतराणंतरेण सण्णियासविहाणं जाणियण णेदव्वं । एवमणुकट्टिपरूवणा गया। दोनों सदृश हैं । इसी प्रकार दूसरे समयके परिणामखण्डोंका और तीसरे समयके परिणामखण्डोंका सन्निकर्ष करना चाहिए । इसी प्रकार ऊपर भी पिछलेकी तदनन्तरके साथ सन्निकर्षविधि जानकर कथन करना चाहिए। इस प्रकार अनुकृष्टिप्ररूपणा समाप्त हुई। विशेषार्थ—यहाँपर आगे कहे जानेवाले अल्पबहुत्व तथा अनुकृष्टि रचनाका स्पष्ट ज्ञान करनेके लिये अंकसंदृष्टि दी जाती है । अधःप्रवृत्तकरणका काल अन्तर्मुहूर्त है जो अंकसंदृष्टिमें यहाँ १६ स्वीकार किया गया है। कुल परिणाम असंख्यात लोकप्रमाण हैं, जो यहाँ ३०७२ स्वीकार किये गये हैं। ये सब परिणाम प्रत्येक समयमें उत्तरोत्तर समान वृद्धिको लिये हुए हैं। इस हिसावसे यहाँ समान वृद्धि या चयका प्रमाण ४ है। प्रथम स्थानमें वृद्धिका अभाव है, इसलिये प्रथम समयको छोड़कर १५ समयोंमें क्रमशः चयकी वृद्धि हुई है, अतः एक कम सब समयोंके आधेको चय और समयोंकी संख्यासे गुणित करनेपर १६ - १ = १५; १५:२= १५, १५४४४ १६ = ४८० चयधनका प्रमाण होता है । इसे सर्वधन ३०७२ में से घटाकर शेष २५९२ में सब समयोंका भाग देनेपर १६२ लब्ध आता है। यह प्रथम समयके परिणामोंका प्रमाण है । पुनः प्रथम समयके कुल परिणामोंकी संख्या १६२ में चयका प्रमाण ४ मिलानेपर दूसरे समयके सब परिणामोंकी संख्या १६६ होती है। इसमें चयका प्रमाण ४ मिलानेपर तीसरे समयके सब परिणामोंकी संख्या १७० होती है। इसी हिसाबसे प्रत्येक समयमें चयप्रमाण परिणामोंकी वृद्धि करते हुए अन्तिम सययमें सब परिणामोंकी संख्या २२२ होती है। इस प्रकार १६ समयोंमें विभाजित इन परिणामोंका कुल योग ३०७२ होता है। इसका आशय यह है कि नाना जीवोंकी अपेक्षा प्रथम समयमें कुल १६२ परिणाम होते हैं, दूसरे समयमें १६६ और तीसरे समयमें १७० परिणाम होते हैं। एक समयमें एक जीवके एक ही परिणाम होता है, इसलिये यहाँ प्रत्येक समयमें उस उस समयके ये परिणाम नाना जीवोंके होते हैं, ऐसा कहा गया है । यह तो अधःप्रवृत्तकरणके कालमें उसमें होनेवाले सब परिणामोंका विभागीकरण किस प्रकारसे है इसका विचार हुआ। अब ऊपरके समयोंमें स्थित जीवोंके परिणामोंकी नोचेके समयों में स्थित जीवोंके परिणामोंके साथ सदृशता और विसदृशता किस प्रकारसे है यह बतलानेके लिए अनष्टि रचना करते हैं। अधःप्रवृत्तकरणके प्रत्येक समयके जितने परिणाम हैं उनके अन्तर्मुहूर्तके जितने समय हैं उतने खण्ड करे । यह अन्तर्मुहूर्त अधःप्रवृत्तकरणके कालके संख्यातवें भागप्रमाण है। इस हिसाबसे संख्यातका प्रमाण ४ स्वीकार कर उसका भाग १६ में देने पर ४ लब्ध आये । निर्वर्गणाकाण्डकका प्रमाण भी इतना ही है, अतः प्रत्येक समयके परिणामोंको चार-चार खण्डोंमें विभाजित करना चाहिए । उसमें भी प्रथम खण्डसे द्वितीय खण्ड, द्वितीय खण्डसे तृतीय खण्ड और तृतीय खण्डसे चतुर्थ खण्ड विशेष अधिक है । यहाँ विशेष या चयका प्रमाण अन्तर्मुहूर्तका भाग निर्वर्गणाकाण्डकके प्रमाणमें देने पर जो लब्ध आवे उतना है। पहले अंकसंदृष्टिमें निर्वर्गणाकाण्डकका प्रमाण ४ बतला आये हैं। अन्तमुहूर्तका प्रमाण भी इतना ही है । अतः अन्तर्मुहूर्तका प्रमाण ४ का भाग निर्वर्गणाकाण्डक

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