Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ उवजोगो ७
९५. एत्थ कोहो दुविहो— सामण्णकोहो विसेस कोहो चेदि । तत्थाणंताणुबंधिआदिविसेसविवखाए विणा जं सव्वविसेससाहारणं कोहसामण्णं तं सामण्णकोहो णाम, तव्विवरीदसरूवो विसेसकोहो ति भण्णदे, अनंताणुबंधिआदिविसेसविवक्खाणिबंधत्तादो। एत्थ वुण सामण्ण कोहावेक्खाए चउव्विहत्तमेदं परूविदं, अनंताणुबंधिआदिविसेसपणाए पादेक्कं तेसिं चउव्विहत्ताणुवलंभादो । किं कारणं १ अनंताणुबंधिपच्चक्खाणापच्चक्खाणकोहाण मेगट्ठाणपरिहारेण वि-ति-चउट्ठाणाणं चैव संभवदंसणादो । ततः संगृहीताशेषविशेषलक्षणं क्रोधसामान्यमाश्रित्य चातुर्विध्यमेतद्व्यवस्थितमिति सूक्तं । एवं मानादीनामपि वाच्यम् ।
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(१८) जग पुढवि वालुगोदयराईसरिसो चउव्विहो कोहो ।
सेलघण- अट्ठि- दारुअ-लदासमाणां हवदि माणो ॥२- ७१ ॥
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§ ६. एसा विदियगाहा । एदीए कोह - माणकसायाणं णिदरिसणोवणयणमुहेणं पादेक्कं चउन्हं मेदाणं णामणिदेसो कओ । तं जहा – ' णग - पुढवि ० ' एवं भणिदे राइसदस्स सरिससद्दस्स च पादेकमहिसंबंध काढूण णगराइसरिसो पुढविराइसरिसो वालुअराइसरिसो उदयराइसरिसो चेदि कोहो चउन्विहो होदि ति सुत्तत्थसमत्थणा
$५. यहाँपर क्रोध दो प्रकारका है - सामान्य क्रोध और विशेष क्रोध । उनमें से अनन्तानुबन्धी आदि विशेषकी विवक्षा विना जो सब विशेषोंमें साधारण क्रोध सामान्य है वह क्रोध सामान्य कहलाता है और उससे विपरीत स्वरूपवाला विशेष क्रोध कहा जाता है, क्योंकि यह संज्ञा अनन्तानुबन्धी आदि विशेषकी विवक्षानिमित्तक है, परन्तु यहाँपर सामान्य क्रोध की अपेक्षासे यह चार प्रकारका कहा है, क्योंकि अनन्तानुबन्धी आदि विशेषकी मुख्यतासे प्रत्येक उनकी चार प्रकार से उपलब्धि नहीं होती, क्योंकि अनन्तानुबन्धी, प्रत्याख्यान और अप्रत्याख्यान क्रोधोंके एक स्थानका परिहारकर द्विस्थान, त्रिस्थान और चतुःस्थानरूप अनुभागकी ही उत्पत्ति देखी जाती है । इसलिये जिसने अपने समस्त विशेषोंका संग्रह किया है ऐसे लक्षणवाले क्रोधसामान्यका आश्रयकर क्रोधकी चतुर्विधता व्यवस्थित है यह ठीक ही कहा है । इसी प्रकार मानादिकके विषयमें भी कथन करना चाहिए ।
* क्रोध चार प्रकारका है— नगराजिसदृश, पृथिवीराजिसदृश, वालुकाराजि - सदृश और उदकराजिसदृश । मान भी चार प्रकारका है— शैलघनसमान, अस्थिसमान, दारुसमान और लतासमान ॥२-७१ ॥
$६. यह दूसरी गाथा है । इसमें क्रोधकषाय और मानकषायके उदाहरणद्वारा प्रत्येकके चार भेदोंका नामनिर्देश किया गया है । यथा - 'णग- पुढवि०' ऐसा कहनेपर 'राजि' शब्दका और 'सदृश' शब्दका प्रत्येकके साथ सम्बन्ध करके नगराजिसदृश, पृथिवीराजिसदृश, वालुका जिसदृश और उदकराजिसदृश क्रोध चार प्रकारका है इस प्रकार सूत्रके अर्थका समर्थन
१. ता०प्रतौ सेसो कोहो [ दि] त्ति इति पाठः । २, ता०प्रतौ निदरिसणोवमुहेण इति पाठः ।