Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[चउट्ठाणं८ * तं जहा। . $३९. सुगमं ।
* णामट्ठाणं ट्ठवणट्ठाणं दव्वट्ठाणं खेत्तट्ठाणं अद्धट्ठाणं पलिवीचिट्ठाणं उच्चट्ठाणं संजमट्ठाणं पयोगट्ठाणं भावहाणं च ।
४०. तत्थ जीवाजीवमिस्सभेयभिण्णाणमभंगाणं णिमित्तंतरणिरवेक्खा ट्ठाणसण्णा णामट्ठाणमिदि भण्णदे । 'निमित्तांतरानपेक्षं संज्ञाकर्म नामेति' वचनात् । सम्भावमसब्भावसरूवेणेदं ठाणमिदि ठविजमाणं ठवणाहाणं णाम । दव्वट्ठाणमागमणोआगमभेदेण दुविहं । तत्थागमदव्वट्ठाणं णोआगमजाणुगसरीर-भवियदव्वट्ठाणं च सुगमं । तव्वदिरित्तणोआगमदव्वट्ठाणं हिरण्ण-सुवण्णादिदव्वाणं भूमियादिसु ठविञ्जमाणाणं अवट्ठाणं। खेत्तट्ठाणं णाम उड्ड-मज्झ-तिरियलोगाणमप्पप्पणो संठाणविसेसेणाकिट्टिमसरूवेणावट्ठाणं । अद्धट्ठाणं णाम समयावलिय-खण-लव-मुहुत्तादिकालवियप्पा । पलिवीचिट्ठाणं णाम द्विदिबंधवीचारहाणाणि सोवाणट्ठाणाणि वा भण्णंति । उच्चट्ठाणं णाम पव्वदादयमुच्च पदेसो। एत्थेव णीचट्ठाणस्स वि अंतब्भावो वत्तव्वो। मान्यस्थानं वोच्चस्थानमिति व्याख्येयं । संजमट्ठाणमिदि वुत्ते सामाइयच्छेदोवट्ठावणादिसंजमलद्धिट्ठाणाणि पडिवादादिभेयभिण्णाणि घेत्तव्वाणि । संजमविसेसिदपमत्तादिगुणट्ठाणाणि
* वह जैसे। $३९. सुगम है।
* नामस्थान, स्थापनास्थान, द्रव्यस्थान, क्षेत्रस्थान, अद्धास्थान, पलिवीचिस्थान, उच्चस्थान, संयमस्थान, प्रयोगस्थान और भावस्थान ।
४०. उनमें से जीव, अजीव और मिश्रके भेदसे भेदको प्राप्त हुए आठ भंगोंकी अन्य निमित्तकी अपेक्षा किये विना स्थान संज्ञा रखना नामस्थान ऐसा कहा जाता है, क्योंकि 'दूसरे निमित्तकी अपेक्षा किये विना संज्ञाकर्मको नाम कहते हैं' ऐसा वचन है। यह स्थान है' इस प्रकार सद्भाव और असद्भावरूपसे स्थापना करनेको स्थापनास्थान कहते हैं । आगम और नोआगमके भेदसे द्रव्यस्थान दो प्रकारका है। उनमें से आगमद्रव्यस्थान सुगम है तथा नोआगम द्रव्यस्थानके ज्ञायकशरीर और भावी ये भेद सुगम हैं। तथा भूमि आदिमें रखे जानेवाले चाँदीसोना आदिके अवस्थानको तद्वयतिरिक्त नोआगमद्रव्यस्थान कहते हैं। ऊवलोक, मध्यलोक और तिर्यग्लोकका अपने-अपने अकृत्रिमस्वरूप संस्थान विशेषरूपसे अवस्थानका नाम क्षे है। समय, आवलि, क्षण, लव और मुहूर्त आदि कालके भेदोंका नाम अद्धास्थान है। स्थितिबन्धसम्बन्धी वीचारस्थानोंको अथवा सोपानस्थानोंको पलिवीचिस्थान कहते है । पर्वत आदि उच्चप्रदेशका नाम उच्चस्थान है। यहींपर नीचस्थानका भी अन्तर्भाव कहना चाहिए । अथवा मान्यस्थानका नाम उच्चस्थान है ऐसा व्याख्यान करना चाहिए। संयमस्थान ऐसा कहनेपर प्रतिपातादि भेदसे अनेक प्रकारके सामायिक और छेदोपस्थापना आदि संयमलब्धिस्थानोंको ग्रहण करना चाहिए। अथवा संयमको अपेक्षा विशेषताको प्राप्त हुए प्रमत्त आदि गुणस्थानोंको ग्रहण करना चाहिए । मन, वचन और कायका प्रयोगलक्षण योग