Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गाथा ९४] दसणमोहोवसामणा
२०५ २४. तेउ-पम्म-सुकलेस्साणमण्णदरा णियमा वड्डमाणलेस्सा एदस्स होदि, ण हायमाणा त्ति वुत्तं होइ । एदेण किण्ह-णील-काउलेस्साणं हाममाण-तेउ-पम्म-सुक्कलेस्साणं च पडिसेहो कओ ददुव्यो। एत्थ चोदगो भणइ–ण एस वड्डमाणसुहतिलेस्साणियमो एत्थ घडदे, गेरइएसु सम्मत्तुप्पायणे वावदेसु असुहतिलेस्साणं पि संभवोलंभादो ? ण एस दोसो, तिरिक्ख-मणुस्से अस्सिणेदस्स सुत्तस्स पयदृत्तादो। ण च तिरिक्ख-मणुस्सेसु सम्मत्तं पडिवज्जमाणेसु सुह-तिलेस्साओ मोत्तूणण्णलेस्साणं संभवो अस्थि, सुठु वि मंदविसोहीए सम्म पडिवज्जमाणस्स तत्थ जहण्णतेउलेस्साणियमदंसणादो । कुदो वुण देव-णेरइयाणमिह विवक्खा ण कया त्ति चे १ ण, तेसिमवद्विदलेस्समावपदुप्पायणडमेत्य परियडमाणसव्वलेस्साणं तिरिक्ख-मणुस्साणं चेव पहाणतेण विवक्खियत्तादो।
* वेदो य को भवे त्ति विहासा।
२४. पीत, पन और शुक्ल लेश्याओंमेंसे नियमसे कोई एक वर्धमान लेश्या इसके होती है, इनमेंसे कोई भी लेश्या होयमान नहीं होती यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इस वचन द्वारा इस जीवके कृष्ण, नील और कपोत लेश्याका तथा हीयमान पीत, पद्म और शुक्ल लेश्याका प्रतिषेध किया गया जान लेना चाहिए।
शंका-यहाँ पर शंकाकार कहता है कि यह जो वर्धमान शुभ तीन लेश्याओंका नियम यहाँ पर किया है वह नहीं बनता, क्योंकि नारकियोंके सम्यक्त्वकी उत्पत्ति करनेमें व्यापृत होने पर अशुभ तीन लेश्याएं भी सम्भव पाई जाती हैं ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि तिर्यश्नों और मनुष्योंकी अपेक्षा यह सूत्र प्रवृत्त हुआ है । और तिर्यञ्चों तथा मनुष्योंके सम्यक्त्वको प्राप्त करते समय शुभ तीन लेश्याओं को छोड़कर अन्य लेश्याएं सम्भव नहीं हैं, क्योंकि अत्यन्त मन्द विशुद्धि द्वारा सम्यक्त्वको प्राप्त करनेवाले जीवके वहाँ पर जघन्य पीत लेश्याका नियम देखा जाता है।
शंका-परन्तु यहाँपर देव और नारकियोंकी विवक्षा क्यों नहीं की ? ... समाधान नहीं, क्योंकि उनके अवस्थित लेश्याभावका कथन करनेके लिये यहाँपर परिवर्तमान सब लेश्यावाले तिर्यञ्चों और मनुष्योंकी हो प्रधानरूपसे विवक्षा की गई है।
विशेषार्थ-चूर्णिसूत्र में उपशम सम्यक्त्वके सन्मुख हुए जीवके वर्धमान मात्र पीत, पद्म और शुक्ल ये तीन शुभ लेश्याएं ही क्यों स्वीकार की गई हैं, जब कि नारकियोंके इस अवस्थामें एक भी शुभ लेश्या नहीं होती। यह एक प्रश्न है। समाधान यह है कि नारकियों और देवोंमें जिसके जो लेश्या होती है वह अवस्थितस्वरूप होती है, इसलिये उल्लेख न करनेपर भी उसका ज्ञान हो जाता है। यहाँ प्रश्न तो यह है कि तिर्यञ्च और मनुष्यगतिमें एक ही जीवके परिवर्तनक्रमसे छहों लेश्याएं सम्भव हैं क्या ? अतः यहाँ यह बतलाया गया है कि तिर्यञ्चों और मनुष्योंमें उपशमसम्यक्त्वके सन्मुख होनेपर तीन शुभ लेश्याओंमेंसे कोई एक लेश्या होती है।
* वेद कौन होता है इस पदकी विभाषा ।