Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गाथा ७८ ] णपमगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा
१६३ विभागपलिच्छेदेहितो दारुअसमाणविदियवग्गणाविभागपलिच्छेदा अणंतगुणा । एवं णेदव्वं जाव लदासमाणुक्कस्सवग्गणाविभागपलिच्छेदेहितो दारुअसमाणुकस्सवग्गणाविभागपलिच्छेदा अणंतगुणा जादा त्ति । एवं होदित्ति कादूण लदासमाणसव्वाणुभागाविभागपलिच्छेदेहिंतो दारुअसमाणसव्वाणुभागाविभागपलिच्छेदा अणंतगुणा भवंति । एवं दारुअसमाणादो अद्विसमाणाणुभागो अणंतगुणो। तत्तो वि सेलसमाणाणुभागो अणंतगुणो।
5 २२. वग्गणाणं पुण भण्णमाणे लदासमाणाविभागपलिच्छेदुत्तरकमेण वड्डिदसव्यवग्गणदीहत्तादो दारुअसमागाविभागपलिच्छेदुत्तरकमेण वड्डिदसव्ववग्गणादीहत्तमणंतगुणं । तत्तो अद्विसमाणाणुभागसव्यवग्गण दीहत्तभणंतगुणं । तत्तों सेलसमाणसव्वाणुभागवग्गणदीहत्तमणंतगुणं होदि ति । एत्थ सव्वत्थाविभागपलिच्छेदगुणगारो सव्वजीवेहिंतो अणंतगुणो । वग्गणागुणगारो च अभवसिद्धिएहिं अणंतगुणो सिद्धाणमणंतभागमेत्तो। संपहि लदासमाणचरिमसंधीदो दारुअसमाणपढमसंधी अणुभागग्गेण पदेसग्गेण च कधं होदि, एवं सेससंधीओ कथं होंति ति एवंविहासंकाणिरायरणद्वमुत्तरं गाहासुत्तमोइण्णं(२५) संधीदो संधी पुण अहिया णियमा च होइ अणुभागे।
हीणा च पदेसग्गे दो वि य णियमा विसेसेण ॥७॥ दूसरी वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेदोंसे दारुके समान दूसरी वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेद अनन्तगुणे हैं । इस प्रकार लताके समान उत्कृष्ट वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेदोंसे दारुके समान उत्कृष्ट वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेद अनन्तगुणे हैं इस स्थानके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए। इस प्रकार उत्तरोत्तर अनुभागकी व्यवस्थाके अनुसार यह क्रम निश्चित होता है कि लताके समान समस्त अनुभाग-अविभागप्रतिच्छेदोंसे दारुके समान समस्त अनुभागके अविभागप्रतिच्छेद अनन्तगुणे हैं। इसीप्रकार दारुके समान अनुभागसे अस्थिके समान अनुभाग अनन्नगुणा है। उससे भी शैलके समान अनुभाग अनन्तगुणा है।
२२. परन्तु वर्गणाओंकी अपेक्षा कथन करनेपर लताके समान अविभागप्रतिच्छेदोंके उत्तरोत्तर क्रमसे बढ़ी हुई सब वर्गणाओंके आयामसे दारुके समान अविभागप्रतिच्छेदोंके उत्तरोत्तर क्रमसे बढ़ा हुआ सब वर्गणाओंका आयाम अनन्तगुणा है। उससे अस्थिके समान अनुभागसम्बन्धी सब वर्गणाओंका आयाम अनन्तगुणा है। तथा उससे शैलके समान अनुभागसम्बन्धी समस्त वर्गणाओंका आयाम अनन्तगुणा है। यहाँपर सर्वत्र अविभागप्रतिच्छेदोंका गुणकार सब जीवोंसे अनन्तगुणा है और वर्गणाओंका गुणकार अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण है। अब लताके समान अन्तिम सन्धिसे दारुके समान प्रथम सन्धि अनुभागसमूह और प्रदेशसमूहकी अपेक्षा कैसी होती है तथा इसी प्रकार शेष सन्धियाँ कैसी होती हैं इस प्रकार इस तरहकी आशंकाका निराकरण करनेके लिये आगेका गाथासूत्र आया है
उत्तरोत्तर अन्तिम सन्धिसे आगेकी प्रथम सन्धि अनुभागकी अपेक्षा तो नियमसे विशेष अधिक होती है और प्रदेशोंकी अपेक्षा नियमसे विशेष हीन होती है। इस