Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[चउट्ठाणं ८ द्वाणाणमसण्णीसु बंधो होइ, गाण्णेसिमिदि सिद्धं । एदेसि च दोण्हं द्वाणाणमविभत्तसरूवाणमेवासण्णीसु बंधो होदि त्ति घेत्तव्वं, विभत्तसरूवेण तत्थ तेसिं बंधासंभावादो ।
३१. संपहि सण्णीसु कथं होइ त्ति आसंकाए इदमाह-'सण्णी चदुसु घिभज्जो' सण्णी खलु चदुसु वि अणुभागहाणेसु बंधेण भयणिज्जो-सिया एगट्टाणियं, सिया विट्ठाणियं, सिया तिहाणियं, सिया चउट्ठाणियमणुभागं बंधदि ति । किं कारणं ? चउण्हं ठाणाणं बंधकारणविसुद्धि-संकिलेसाणं तत्थ संभवं पडि विरोहाभावादो। एदेण बंधमस्सियूण सण्णिमग्गणाविसयपुव्विल्लपुच्छाए अत्थणिण्णओ दरिसिदो। एदीए दिसाए उदयोवसंत-संताणं पि तत्थ णिण्णयो मग्गियव्वो, सुत्तस्सेदस्स देसामासियत्तादो । तं कथं ? असण्णीसु उदयो विट्ठाणं चेव, सेसोदयपरिणामाणमेत्थ अच्चंताभावेण पडिसिद्धत्तादो। उवसंतं संतं च एगट्ठाण-विट्ठाण-तिहाण-चउहाणं भवदि । णवरि एगट्ठाणस्स सुद्धस्स संभवो णत्थि त्ति पुव्वं व वत्तव्यं । सण्णीणं पुण संतमुवसंतमुदयो च सव्वाणि चेव हाणाणि होति त्ति घेत्तव्वं ।
$ ३२. संपहि 'कं ठाणं वेदंतो कस्स व ढाणस्स बंधगों होदि' ति एदिस्से
इसलिए लतासमान और दारुसमान संज्ञावाले दोनों ही अनुभागस्थानोंका असंज्ञियोंके बन्ध होता है, अन्य दो स्थानोंका बन्ध नहीं होता यह सिद्ध हुआ। अविभक्तस्वरूप इन दोनों ही स्थानोंका असंज्ञियोंमें बन्ध होता है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि विभक्तरूपसे उन स्थानोंका उनमें बन्ध होना असम्भव है।
३१. अब संज्ञी जीवोंमें किस प्रकारका बन्ध होता है ऐसी आशंका होनेपर यह वचन कहते हैं-'सण्णी चदुसु विभज्जो' संज्ञी जीव चारों ही अनुभागस्थानोंमें नियमसे बन्धकी अपेक्षा भजनीय है-कदाचित् एकस्थानीय, कदाचित् द्विस्थानीय, कदाचित् त्रिस्थानीय और कदाचित् चतुःस्थानीय अनुभागको बाँधता है, क्योंकि उनमें चारों ही स्थानोंके बन्धके कारण विशुद्धि और संक्लेशरूप परिणाम सम्भव है, इसमें कोई विरोध नहीं है। इस प्रकार इस वचन द्वारा बन्धका अवलम्बन लेकर संज्ञीमार्गणाविषयक पिछली पृच्छाके अर्थका निर्णय दिखलाया। इसी दिशाद्वारा उदय, उपशम और सत्त्वका भी संज्ञी मार्गणामें निर्णय कर लेना चाहिए, क्योंकि यह सूत्र देशामर्षक है।
शंका-वह कैसे ?
समाधान-असंज्ञियोंमें उदय द्विस्थानीय ही होता है, क्योंकि शेष उदयरूप परिणामोंका उनमें अत्यन्त अभाव होनेसे उनका वहाँ निषेध किया है। असंज्ञियोंमें उपशम और सत्त्व एकस्थानीय, द्विस्थानीय, त्रिस्थानीय और चतुःस्थानीय होता है। इतनी विशेषता है कि इनमें शुद्ध एकस्थानीय उपशमस्थान और सत्त्वस्थान नहीं होता यह कथन यहाँ पूर्वके समान करना चाहिए। परन्तु संज्ञियोंमें सत्त्व, उपशम और उदयरूप सभी स्थान होते हैं ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए।
$३२. अब 'कं ठाणं वेदंतो कस्स व ट्ठाणस्स बंधगो होदि इस प्रकार इस पृच्छाका १. ताप्रती उदयोवसंताणं इति पाठः ।