Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
गाथा ६५j
तदियगाहासुत्तस्स अत्यपरूवणा पुच्छिजदे । तत्थ गाहापुव्वद्धेण 'उवजोगवग्गणाओ कम्हि कसायम्हि केत्तिया होंति' त्ति ओघेण पुच्छाणिद्देसो कओ। पच्छद्धेण वि 'कदरिस्से च गदीए केवडिया वग्गणा होति' त्ति आदेसविसया पुच्छा णिहिट्ठा त्ति दट्ठव्वा, गदिमग्गणाविसयस्सेदस्स पुच्छाणिद्देसस्स सेसासेसमग्गणाणं देसामासयभावेणावट्ठाणदंसणादो।
* तस्स विहासा।
१२५. तस्सेदस्स तदियगाहासुत्तस्स कोहादिकसायाणमुवजोगवग्गणापमाणविसयपुच्छाए वावदस्स अत्थविहासा एत्तो कीरदि ति वुत्तं होइ ।
* तं जहा। $ १२६. सुगममेदं पुच्छावकं ।
* उवजोगवग्गणाओ दुविहाओ कालोवजोगवग्गणाओ भावोवजोगवग्गणाओ य।
६ १२७. उवजोगो णाम कोहादिकसाएहिं सह जीवस्स संपजोगो। तस्स वग्गणाओ वियप्पा मेदा त्ति एयट्ठो। जहण्णोवजोगट्ठाणप्पहुडि जाव उक्कस्सोवजोगट्ठाणे त्ति णिरंतरमवहिदाणं तव्वियप्पाणमुवजोगवग्गणाववएसो ति वुत्तं होइ । सो च जहण्णुकस्सभावो दोहिं पयारेहि संभवइ-कालदो भावदो च। तत्थ कालदो
समाधान-इसद्वारा ओघ और आदेशसे क्रोधादिविषयक उपयोगवर्गणाओंका प्रमाण पूछा गया है।
____ वहाँ गाथाके पूर्वार्ध द्वारा 'किस कषायमें कितनी उपयोगवर्गणाएं होती हैं। इस प्रकार ओघसे पृच्छानिर्देश किया गया है तथा गाथाके उत्तरार्ध द्वारा भी 'किस गतिमें कितनी वर्गणाएं होती हैं। इस प्रकार आदेशविषयक पृच्छा निर्दिष्ट की गई है ऐसा जानना चाहिए, क्योंकि गतिमार्गणाविषयक इस पृच्छा निर्देशमें शेष समस्त मार्गणाओंका देशामर्षकभावसे अवस्थान देखा जाता है ।
* अब उसकी विभाषा करते हैं।
$ १२५. क्रोधादि कषायोंकी उपयोगवर्गणाओंकी प्रमाणविषयक पृच्छामें व्याप्त हुए उस इस तीसरे गाथासूत्रकी आगे अर्थविभाषा करते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* वह कैसे ? ६ १२६. यह पृच्छावाक्य सुगम है।
* उपयोगवर्गणाऐं दो प्रकारकी हैं-कालोपयोगवर्गणाएं और भावोपयोगवर्गणाएँ।
६ १२७. क्रोधादि कषायोंके साथ जीवके संप्रयोग करनेको.उपयोग कहते हैं। उनकी वर्गणाऐं अर्थात् विकल्प, भेद इन सबका एक अर्थ है। जघन्य उपयोगस्थानसे लेकर उत्कृष्ट उपयोगस्थान तक निरन्तर अवस्थित हुए उपयोगके विकल्पोंकी उपयोगवर्गणा संज्ञा है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। वह जघन्यभाव और उत्कृष्टभाव दो प्रकारसे सम्भव है-कालकी