Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ उवजोगो ७
८८
ति सिद्धं । संपहि देहिं अट्ठहिं अणिओगद्दारेहिं कसायोवजुत्ताणं मग्गणट्ठदाए तत्थ इमाणि मग्गणट्ठाणाणि होंति त्ति जाणावणट्ठमिदमाह -
* कसायोवजुत्ते अट्ठहिं अणिओगद्दारेहिं गदि - इंदिय-काय - जोग - वेदणाण-संजम - दंसण-लेस्स- भविय सम्मत्त-सण्णि आहारा त्ति एदेसु तेरससु अणुगमेसु मग्गियूण ।
$ १९० देसु गढ़ियादितेरस मग्गणट्ठाणेसु कसायोवजुत्ता जीवा अणंतरणिद्दिट्ठेहिं अट्टहिं अणिओगद्दारेहिं अणुगंतव्वा त्ति वृत्तं होइ । साम्प्रतं यथोक्तेषु मार्गणास्थानेषु यथोक्तैरनुयोगद्वारैः सदादिभिर्विशेषितान् कषायोपयुक्त। नन्वेषयिष्यामः । तद्यथा - तत्थ संतपरूवणाए दुविहो णिसो – ओघेण आदेसेण य । ओघेण अत्थि कोह- माण- मायालोभोवजुत्ता जीवा । एवं सव्वमग्गणासु णेदव्वं ।
$ १९१. दव्वपमाणानुगमेण दुविहो णिद्देसो- ओषेण आदेसेण य । ओघेण कोह -माण - माया - लोभोवजुत्ता दव्वपमाणेण केवडिया १ अनंता । एवं तिरिक्खा० । आदेसेण निरयगदीए णेरइया दव्वपमाणेण केवडिया ! असंखेजा । एवं सव्वरइयसव्वपंचिदियतिरिक्ख- सव्वमणुस - सव्वदेवा त्ति । णवरि मणुसपञ्जत्त - मणुसिणी -सव्वाडदेवा चदुकसायोवजुत्ता दव्वपमाणेण केवडिया ९ संखेजा । एवं जाव अणाहारिति ।
योगद्वार इस गाथाद्वारा सूचित किये गये हैं यह सिद्ध हुआ । अब इन आठ अनुयोगद्वारोंके अवलम्बनसे कषायों में उपयुक्त हुए जीवोंका अनुसन्धान करनेपर वहाँ ये मार्गणास्थान होते हैं इस बातका ज्ञान कराने के लिए कहते हैं—
* कषायोंमें उपयुक्त हुए जीवोंका आठ अनुयोगद्वारोंका आश्रय लेकर गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संज्ञित्व और आहार इन तेरह अनुगमोंमें मार्गण करके ।
$ १९०. इन गति आदि तेरह मार्गणास्थानों में कषायोंसे उपयुक्त हुए जीव अनन्तर पूर्व कहे गये आठ अनुयोगद्वारोंके आश्रयसे जानना चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब यथोक्त मार्गणास्थानोंमें सत् आदि यथोक्त अनुयोगद्वारोंसे विशेषताको प्राप्त हुए कषायों में उपयुक्त हुए जीवोंका अन्वेषण करते हैं । यथा - उनमें से सत्प्ररूपणाकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे क्रोध, मान, माया और लोभ कषाय में उपयुक्त जीव हैं । इसी प्रकार सब मार्गणाओंमें कथन करना चाहिए ।
$ १९१. द्रव्यप्रमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे क्रोध, मान, माया और लोभ कषायमें उपयुक्त जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? अनन्त हैं । इसी प्रकार तिर्यश्च जीव जानने चाहिये । आदेशसे नरकगति में नारकी जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? असंख्यात हैं । इसी प्रकार सब नारकी, सब पचेन्द्रिय तिर्य, सब मनुष्य और सब देव जानने चाहिए। इतनी विशेषता है कि चारों कषायों में उपयुक्त हुए मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यिनी और सर्वार्थसिद्धिके देव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने