Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
गाथ ६९] - सत्तमगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा
१०९ सुत्तत्थसमत्थणा कायव्वा । तदो गाहापुव्वद्धे एवंविहो एको अत्थो पडिबद्धो त्ति सम्ममवहारिदं । पच्छद्धे वि कसायोवजुत्तजीवाणं गदीयो अस्सियण तिविहाए सेढीए अप्पाबहुअपरूवणं णाम बिदियो अत्थो पडिबद्धो । एवमेदेसु दोसु अत्थविसेसेसु पडिबद्धत्तमेदस्स गाहासुत्तस्स णिरूविय संपहि 'जहा उद्देसो तहा णिद्देसो' ति णायावलंबणेण पुव्वद्धस्स ताव विहासणं कुणमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भणइ
* पुरिमद्धस्स विहासा। $ २४१. गाहासुत्तपुरिमद्धस्स ताव विहासा कीरदि त्ति भणिदं होइ ।
* एत्थ दुविहाओ उवजोगवग्गणाओ-कसायउदयट्ठाणाणि च उवजोगद्धहाणाणि च।।
२४२. एत्थ पुरिमद्धविहासणावसरे दुविहाओ उवजोगवग्गणाओ होति । काओ ताओ त्ति पुच्छिदे कसायुदयट्ठाणाणि च उवजोगद्धट्ठाणाणि चेदि भणिदं । तत्थ कसायोदयट्ठाणाणि णाम कोहादिकसायाणमुदयवियप्पा पादेक्कमसंखेजलोयमेयभिण्णा। उवजोगट्ठाणाणि त्ति वुत्ते कोहादिकसायाणं जहण्णोवजोगकालप्पहुडि जावुक्कस्सतकालो त्ति एदेसि वियप्पाणं संगहो कायव्यो । एदाणि च उवजोगद्धट्ठाणाणि अंतोमुहुत्तमेत्ताणि, जहण्णकालमुक्कस्सकालादो सोहिय सुद्धसेसम्मि एयरूवपक्खेवे कदे
उपयोगवर्गणाओंके द्वारा जीवोंसे रहित स्थान प्राप्त होता है इस प्रकार पदसम्बन्ध करके सूत्रके अर्थका समर्थन करना चाहिए। इस प्रकार गाथाके पूर्वार्धमें इस प्रकारका एक अर्थ प्रतिबद्ध है इसका सम्यक् प्रकारसे निश्चय किया। गाथाके उत्तरार्धमें भी कषायोंमें उपयुक्त हुए जीवोंके गतियोंके आश्रयसे तीन प्रकारकी श्रेणियोंद्वारा अल्पबहुत्वका कथन नामक दूसरा अर्थ प्रतिबद्ध है । इस प्रकार इन दो अर्थविशेषोंमें निबद्ध इस गाथासूत्रका निरूपण करके अब 'उद्देश्यके अनुसार निर्देश किया जाता है' इस न्यायका अवलम्बन लेकर सर्वप्रथम पूर्वाधका विशेष व्याख्यान करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* अब पूर्वार्धका विशेष व्याख्यान करते हैं ।
$ ३४१. सर्वप्रथम गाथासूत्रके पूर्वार्धका विशेष व्याख्यान करते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* प्रकृतमें उपयोग वर्गणाएं दो प्रकारकी हैं—कषाय-उदयस्थान और उपयोगअद्धास्थान ।
$ २४२. प्रकृतमें पूर्वार्धके विशेष व्याख्यानके अवसरपर उपयोगवर्गणाएँ दो प्रकारको होती हैं। वे कौनसी हैं ऐसा पूछनेपर कषाय-उदयस्थान और उपयोग-अद्धास्थान ऐसा कहा है। उनमेंसे जो क्रोधादि कषायोंके उदय विकल्प प्रत्येक असंख्यात लोकप्रमाण भेदोंको लिये हुए है वे सब कषाय-उदयस्थान कहलाते हैं। उपयोग-अद्धास्थान ऐसा कहनेपर क्रोधादि कषायोंके जघन्य उपयोगकालसे लेकर उत्कृष्ट उपयोगकाल तक इन भेदोंका संग्रह करना चाहिए । ये उपयोग-अद्धास्थान अन्तर्मुहूर्तप्रमाण हैं, क्योंकि उत्कृष्ट कालमेंसे जघन्य कालको