Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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गाथा ६९]
सत्तमगाहामुत्तस्स अत्थपरूवणां * तं जहा। $३०१. एदं पि सुगमं ।
* पढमसमयोवजुत्तेहिं चरिमसमए च बोद्धव्वा त्ति एत्थ तिण्णि सेढीओ।
६३०२ एदस्स गाहापच्छद्धस्स अत्थविहासणट्ठमेत्थ तिण्णि सेढीओ अप्पाबहुअसंबंधिणीओ णादव्वाओ त्ति भणिदं होइ । कधं पुण गाहापच्छद्धमेदं तिविहाए सेढीए अप्पाबहुअपरूवणम्मि पडिबद्धमिदि चे ? वुच्चदे, तं जहा-एत्थतणसमयसद्दो ण कालवाचओ, किंतु ववत्थावाचओ घेत्तव्वो। तेण पढमसमयोवजुत्तेहिं त्ति वुत्ते पढमादियाए सेढीए गहणं कायव्वं, पढमकसायादियाए ववत्थाए परिणदेहिं जीवहिं एया अप्पाबहुअसेढी णायव्वा त्ति सुत्तत्थावलंबणादो। एवं चरिमसमये च बोद्धव्वा त्ति एदेण वि चरिमादियाए सेढीए संगहो कायव्वो, चरिमकसायादियाए ववत्थाए अण्णा अप्पाबहुअसेढी बोद्धव्वा ति तदत्थावलंवणादो। जेणेदाओ दो वि सेढीओ देसामासयभावेण पयट्टाओ तेण विदियादिया वि सेढी एत्थेवंतब्भूदा ति गहेयव्वा । अथवा सम्यगीयते प्राप्यते इति समयः संपरायः कसाय इत्येकोऽर्थः। प्रथमश्चासौ समयश्च
* वह जैसे। $ ३०१. यह सूत्रवचन भी सुगम है।
* प्रथमादिका श्रेणि या प्रथम आदि कषायोंमें उपयुक्त हुए जीवोंके द्वारा और अन्तिमादिका श्रेणि या अन्तिमादि कषायोंमें उपयुक्त हुए जीवोंकेद्वारा अल्पबहुत्व जानना चाहिए । इस प्रकार प्रकृतमें तीन श्रेणियाँ कही गई हैं।
३०२. गाथाके इस उत्तरार्धके अर्थका विशेष व्याख्यान करनेके लिये यहाँपर अल्पबहुत्वसे सम्बन्ध रखनेवाली तीन श्रेणियाँ जानना चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
शंका-गाथाका यह उत्तरार्ध तीन प्रकारकी श्रेणियोंसे सम्बन्ध रखनेवाले अल्पबहुत्वके कथनमें कैसे प्रतिबद्ध है ?
समाधान-कहते हैं, यथा-इसमें आया हुआ 'समय' शब्द कालवाचक नहीं है, किन्तु व्यवस्थावाचक ग्रहण करना चाहिए। इसलिये 'पढमसमयोवजुत्तेहिं' ऐसा कहनेपर प्रथमादिका श्रेणिका ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि प्रथम कषाय आदिरूप व्यवस्थासे परिणत हुए जीवोंके द्वारा एक अल्पबहुत्व श्रेणि जाननी चाहिए, इस प्रकार प्रकृतमें सूत्रार्थका अवलम्बन लिया है। इसी प्रकार 'चरिमसमए च बोद्धव्वा' इस प्रकार इस वचनद्वारा भी चरमादिका श्रेणिका संग्रह करना चाहिए, क्योंकि अन्तिम कषाय आदिरूप व्यवस्थामें अन्य अल्पबहुत्व श्रेणि जाननी चाहिए इस प्रकार उक्त वचनके अर्थका अवलम्बन लिया है। यतः ये दोनों ही श्रेणियाँ देशामर्षकभावसे प्रवृत्त हुई हैं, इसलिए द्वितीयादिका श्रेणि भी यहाँपर अन्तर्भूत है, अतः उसे भी ग्रहण करना चाहिए । अथवा जो 'सं सम्यक्रूपसे 'ईयते' अर्थात्
१. ता० प्रती तेण वि विदियादिया इति पाठः । २. ता प्रती संपराय कषाय इति पाठः ।