Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
मदीदाणादका माण - णोमाण- मिस्सादिकालवियप्पपडिबद्धपमाणपरूवणाए बिद्धता । कथमेदं णव्वदे ? जे जे जीवा जम्हि कसाए वट्टमाणसमए उवजुत्ता ते तप्पमाणा चेव होतॄण किण्णु भूदपुव्वा किं माणोवजुत्ता चेव होतॄण माणकालेण परिणदा आहो मानवदिरित्तसेस कसायोवजुत्ता होदूण णोमाण कालपरिणदा, किं वा माणणोमाणेहिं जहापविभागमकमोवजुत्ता होतॄण मिस्सयकालेण परिणदा त्ति एवमादिपुच्छा हिसंबंधेण सुत्तत्थवक्खाणावलंबणादो | एत्थ गाहापुव्वद्धम्मि अदीदकालविसयो पुच्छासो पडिवो । 'होहिंति च उवजुत्ता' त्ति एदम्मि वि पच्छद्धावयवे अणागयकालविसयो पुच्छाणिदेसो णिबद्धो । एवमोघेण पुच्छाणिद्देसं काढूण तदो आदेस - परूवणाए वि किंचि वीजपदमुवइङ्कं ' एवं सव्वत्थ बोद्धव्या' ति । तदो एदिस्से छुट्टीए गाहाए कालजोणिया परूवणा कायव्वा त्ति सिद्धं ।
I
९२
[ उवंजोगो ७
समाधान —क्योंकि इस गाथा में वर्तमान समय में मानादि कषायों में उपयुक्त हुए जीवोंकी अतीत और अनागत कालमें मान, नोमान और मिश्र आदि कालके भेदोंसे सम्बन्ध रखनेवाले प्रमाणकी प्ररूपणा निबद्ध है ।
शंका—यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान — क्योंकि जो जो जीव वर्तमान समय में जिस कषायमें उपयुक्त हैं वे सबके सब क्या भूतपूर्व अर्थात् अतीत कालमें भी मानकषाय में ही उपयुक्त होकर क्या मानकालसे परिणत थे या मानव्यतिरिक्त शेष कषायोंमें उपयुक्त होकर नोमानकालसे परिणत थे अथवा क्या यथाविभाग मान और नोमानरूपसे युगपत् उपयुक्त होकर मिश्रकालसे परिणत थे इत्यादि पृच्छाके सम्बन्धसे सूत्रार्थके व्याख्यानका अवलम्बन लिया है, इससे जाना जाता है कि इस गाथामें उक्त प्ररूपणा निबद्ध है ।
यहाँ गाथा पूर्वार्ध में अतीतकालविषयक पृच्छाका निर्देश किया गया है तथा गाथा के उत्तरार्ध के 'होहिं ति च उबजुत्ता' इस पादमें भी अनागत कालविषयक पृच्छाका निर्देश किया गया है । इस प्रकार ओघसे पृच्छाका निर्देश करके तदनन्तर आदेशप्ररूपणासम्बन्धी भी 'एवं सव्वत्थ बोद्धव्वा' इस चरणद्वारा संक्षेप में बीजपदका निर्देश किया गया है । इसलिए इस छठी गाथाकी कालके आश्रयसे प्ररूपणा करनी चाहिए यह सिद्ध हुआ ।
विशेषार्थ — कषायके चार भेदोंमेंसे वर्तमान समयमें जो जीव जिस कषाय से उपयुक्त हैं वे अतीत कालमें क्या उसी कषायसे उपयुक्त थे या भविष्य कालमें उसी कषायसे उपयुक्त रहेंगे ऐसी पृच्छा होनेपर मानकषायकी अपेक्षा इसका उत्तर तीन प्रकार से होगा । प्रथम उत्तर होगा कि वे सब जीव अतीत कालमें भी मानकषायसे उपयुक्त थे या मानकषाय से उपयुक्त रहेंगे। दूसरा उत्तर होगा कि वे सब जीव अतीत कालमें क्रोध, माया और लोभ कषायसे उपयुक्त थे या क्रोध, माया और लोभकषायसे उपयुक्त रहेंगे। तथा तीसरा उत्तर होगा कि उन जीवों में से कुछ तो क्रोध, माया और लोभकषायसे उपयुक्त थे और कुछ जीव मानकषायसे उपयुक्त थे 'या कुछ जीव तो क्रोध, माया और लोभ कषायसे उपयुक्त रहेंगे और कुछ जीव मानकपाय से उपयुक्त रहेंगे। उक्त पृच्छाके ये तीन उत्तर हैं। अतएव इस हिसाब से काल भी तीन भागों में विभक्त हो जाता है- - प्रथम उत्तर के अनुसार मानकाल, दूसरे उत्तर के अनुसार