Book Title: Kasaypahudam Part 12
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ उवजोगो ७ २०६. संपहि वट्टमाणसमयकोहोवजुत्ताणं कदिविधो कालो होदि त्ति आसंकाए णिण्णयकरणट्ठमाह____* अस्सि समये कोहोवजुत्ता तेसिं तीदे काले माणकालो पत्थि, णोमाणकालो मिस्सयकालो य ।
२०७. कुदो ताव माणकालो त्थि त्ति पुच्छिदे वुच्चदे-कोहरासी बहुओ, माणोवजुत्तजीवरासी थोचो होइ, अद्धाविसेसमस्सियूण माणरासीदो कोहरासिस्स विसेसाहियत्तदंसणादो। तदो वट्टमाणसमये कोहोवजुत्तो होदूण द्विदरासी अदीदकालम्मि एक्कसमएण सव्वो चेव माणोवजुत्तो होदणावट्ठाणं ण लहइ, तत्तो विसेस
नानाजीव । वर्तमानमें। अतीतकालमें
कालसंज्ञा अपेक्षा मानपरिणत मानपरिणत
मानकाल स्वस्थानकी अ० क्रो०, माया, या लो० ५० नोमानकाल कुछ मान परिणत कुछ अन्य मिश्रकाल कषाय परिणत क्रोध परिणत
क्रोधकाल परस्थानकी अ० मान, माया या लोभ ५० नोक्रोधकाल परस्थानकी अ० कुछ क्रोधप०, कुछ अन्य कषाय मिश्रकाल परिणत मायापरिणत
मायाकाल क्रोध०, मान या लोभ प० नोमायाकाल कुछ मायाप०, कुछ अन्य कषाय | मिश्रकाल परिणत लोभपरिणत
लोभकाल क्रो०, मान या मायाप० नोलोभकाल कुछ लोभप०, कुछ अन्य कषाय मिश्रकाल
परिणत $ २०६. अब वर्तमान समयमें क्रोधमें उपयुक्त हुए जीवोंका कितने प्रकारका काल होता है ऐसी आशंका होनेपर निर्णय करनेके लिए कहते हैं
___ * इस समयमें जो जीव क्रोधकषायमें उपयुक्त हैं उनका अतीत कालमें मानकाल नहीं है, नोमानकाल और मिश्रकाल है ।
$२०७. सर्व प्रथम मानकाल किस कारणसे नहीं है ऐसी पृच्छा होनेपर कहते हैंक्रोधकषाय परिणत जीवराशि बहुत है और मानकषायमें उपयुक्त हुई जीवराशि अल्प है, क्योंकि क्रोधकषायपरिणत जीवराशिका काल अधिक है, इसलिए मानराशिसे क्रोधराशि विशेष अधिक देखी जाती है। अतः वर्तमान समयमें क्रोधमें उपयुक्त होकर स्थित हुई जीवराशि अतीतकालमें एक समयके द्वारा सबकी सब मानमें उपयुक्त होकर अवस्थानको